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दुःख निकंदन ॥ यह ॥ पुण्य संजोग. सुजोग मिले जग । पुण्यथी होवे सुखदाईजी ॥ दुःख दोहग दूरा विरलावे । ते सहूपुण्य बडाइ जी ।। पुण्य ॥ १॥ तिहां थी थोडी दूरने | माइ ॥ सावत सहा वैपारी जी ॥ सहू परिवारे तिहां उतरिया । जाता विदेश मझारी , जी ॥ पुण्य ॥ २ ॥ पिछली राते सेठ तिहां आया । करवा भणी नीहारी जी ॥ तिण हीज वट हेटे आइ बैठा । छायानो अन्धारो जी ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ ठसको सुणियो मदन , तणो तब । अतिही आश्चर्य पाया जी ॥ शुचि करी मदन कने आया । मधुर वयणे - बोलाया जी ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सत्यकहे तूं कुण इण समेंह्यां । व्यंतरके मानव जातो जी ॥ किम बैठो तूं वृक्ष चडीने । किण कारण ठसकातो जी ॥ पुण्य ॥५॥ नरम वयण तब | मदन पयंपे । नहीं हूं निश्चय देवो जी ॥ कर्म संजोगे फंद फसाणो॥ महारी दया तुम लेवो
जी ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ मेहर नजर म्हारा पर कीजे । जीवित दान मुज दीजे जी ॥ मर-18 प्राणांतिक उपसर्ग मुकाइ । अभयदान फल लीजे जी ॥ पुण्य ॥७॥ उपकार मुजपे मोटो
थासी । मानव जान बच जासी जी ॥ इत्यादी विनंती करी कह्यो । छोडावो मुजा फांसी जी ॥ पुण्य ॥ ८॥ सेठजीने दया दिल आइ । मदन तणों कर साइ जी ॥ खेंची तत्क्षण नीचे न्हाख्यों । तेतले अश्चर्य थाइ जी ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ सेठजी लटक्या बडने जाइ । मदन जी आश्चर्य पाइ जी ॥ सावंत शाहतो अति घबराया । हे प्रभु अब