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भोग ॥ च ॥ १५॥ बिन कारण तुम मुज भणी जी । क्यों न्हाखो दुःख माय ॥ एह में म. श्रे.
IR उदक लिया विनाजी। मुज थी नहीं जवाय॥च॥१६॥ इम कंही उठ्यो ततक्षिणे जी। * चाल्यो कूप मझार ॥ देव कहे धीटा थनेरे । लनाडर न लगार ॥ च ॥ १७ ॥ कमवक्ती
आइ थायरीरे । क्यों तूं वांछे मोत ॥ पण मदनजी मुणे नहीं जी । कहे इम १ पाणी
* कर्यां कांइ होत ॥ च ॥ १८ ॥ असुर तब असुरत्त थयो जी । तत्क्षण मदन उठाय ॥
वट शाखाने चेंटांवियो जी । हाल्यो चाल्यो नहीं जाय ॥ च ॥ १९ ॥ मदन चिंते रूडो वण्यों जी । करणों किस्यो उपाय ॥ होणहार तिम थावसी जी । चिंता कियां काइ थाय॥च ॥ २०॥ मदन लटक्या बट शाखने जी । ढाल तेरमी मांय॥ अमूल्य आश्चर्य
आगे घणोंजी । सुणजो चित्त लगाय ॥ च ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ क्रोधे | | व्याप्यो व्यंतरो। महावायु चलाय ।। मूल सहित वट उपडी । उडी देशांतर जाय ॥ १ ॥ जोयण पच्चासने अंतरे । जयंती पुरने बाहर ॥ ते वट जाइने स्थंभियो । व्यंतर
गयो आंगार ॥ २ ॥ मदन बडने चेंटी रह्या । वीत्याछे चउपैहर ॥ वदन सहू अकडावियो | २ दस्त १अपनेघर
जाणे टूट हुवेढेरे ॥ ३ ॥ उपाय कुछ चाले नहीं। छूटणरो ते वार ॥ अकुलावण आवे घणी। चिंता व्यापी अपार ॥ ४ ॥ किहां हूं आयो उडी । काम स्थान रह्या दूर ॥ कुण छोडे ए दुःखथी । के होसी आयु पूर ॥ ५॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ श्री अभिनंदन
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