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खण्ड ४
२ मन्दरमें
॥ दोहा ॥ अहंत सिद्ध साधू धरम || गृही यह सरणा चार ॥ नेमीनाथ नमन करी | ॥ कहूं चौथो अधिकार ॥१॥ मदन कथन अतिमन रमन । सुणता विक्से हुल्लास ॥ वक्ता मन बधे उमंग तिम । करेगुणी गुण प्रकाश ॥२॥ बुद्धिबल सहूथी अधिक । जो साहसवंत होय । आश्चर्य चकित सहने करे । सुणजो ते सहू कोय ॥ ३ ॥ रही | मदन जोगी कने । सेवा साधे हमेश ॥ चिंते जोगी परखिये । देइ कोइ आदेश ॥४॥ एकदा रयणी अर्धमें । जोगी अने मदन | विनोद बात करता थका। बैठा अम्ब सदन ॥५॥ रुदन शब्द सुणियो तदा । जोगी कहे कुण रोय ॥ मदन कहे नारी अछे । कहो | तो आयूँ जोय ॥ ६॥ साहस पेखी मदनको । जोगी हुकम फरमाय ॥ जावो खबर आवो | लही । किण कारण अरडाय ॥ ७ ॥ तत्क्षण उठी मदनजी । जोगीने पग लाग ॥ शब्द तणे अनुसार थी । चाल्या शीघ्र ते भाग ॥ ८॥ अन्धारो छायो अति । पृथिवी नहीं देखाय ॥ साहसधारी मदनजी । स्मशाणमें आय ॥ ९ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ गाय २ घांटा रया ॥ यह ॥ प्रज्वल मशाण प्रकाश थी। तिहां देखे दृष्टि पसार ॥ साहसवंत मदन जी । सूली एक उतंग तले । ते बैठी रोवे नार ॥ साहसवंत मदन जी ॥१॥ जवान नर सूली परे । ते मृत्यूक हुयो देखाय ॥ साह ॥ निरखे नारी सब ते । तब दया मदनने आय ॥ सा ॥२॥ मदन पूछे मीठासथी । बाह रोवो