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राजा । हूं तस पतो लगास्यूं ॥ चिंता फिकर नहीं कीजे किंचित । थोडा दिने मिलास्यूं ॥
सु ॥ २० ॥ धीरजधारी सहू परिवारी । मेहलमें आइ रहीया ॥ ढाल एकादश अमोल में भाखी । कैसा आश्चर्य भइया ॥ सु ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ।। - दूजे दिन मकर केतू नृप । कियो दरबार तैयार ॥ मदन अने सामंत सहू । बैठा हो होशियार ॥१॥ बीडो फेरे | रायजी । है कोइ नर बडवीर ॥ लावे कुँवरी माहरी । कर उद्यम धर धीर ॥२॥ आधो | * राज तेहने देऊ । परणावू ते बाल ॥ उपकार ए भूलूं नहीं । जावत जीवित काल ॥ ३ ॥ ऊठो २ सुरमा । कीजे एतो काज ॥ बैठा खाइ चाकरी । धरिये तेह तणी लाज ॥ ४ ॥ मजलस में बीडो फिरे । सहू रह्या नीचो जोय ॥ खबर नहीं किहां गइ ।
लाय किहांथी सोय ॥ ५ ॥ ढाल १२ मी ॥ श्रीरामजी नारन पाइहो। यह०॥ 18| उत्तम थी बचन न क्षमा ही हो ॥ सराते सुराइ जणाह हो ॥ आं ॥ इम जोह राय |
असुरत्त हो कहे । किहां गह सहूनी सुराइ हो ॥ ऊंचा किमं कोई नहीं जोवो । किम || रह्या छो मुरजाइ हो ॥ उत ॥१॥ काम जरासो न होवे तुम थी । तो किम करशो|81 लडाइ हो ॥ एकही हुकम म्हारो नहीं मानो । सीधी रोट्या खाइ हो ॥ उत ॥२॥ वक्त ऊपर कोई काम न आया । पुत्री हमारी गमाइ हो ॥ तिण विन राज पाट ए सायबी । सुनी मुज देखाइ हो ॥ उत ॥ ३ ॥ मैं जाणतो बहु सज्जन महारे । महारे कमी नहीं कांह
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