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म. श्रे.
आपनेरेल
में बुरोरेलाल । छे एपको चोर हो ॥ ज ॥ का ॥ १७ ॥ लंपटी नारी तणो रे लाल
खण्ड ३ र अहंकारी अथाग हो ॥ ज ॥ विद्या पण जाणे घणीरे लाल । मरण स्थंभन मोह भाग
॥ज ॥ का ॥ १८ ॥ एहनी विद्या आगले रे लाल । सुरासर जावे भाग हो ॥ ज॥ तो आपणो किस्यो दाखवूरे लाल । इणने आगल लाग हो ॥ ज ॥ का ॥ १९॥ तेथी|
। जो जाणो करामात हो॥ज || जीति सको इण धूतनर लाल । तो लगावो हाथ हो ॥ ज ॥ का ॥ २० ॥ जाणूं छं हूं आपथीरे लाल । बाइ मैं पासूं - आराम हो ॥ ज ।। ढाल चौथी अमोलख कहीरे लाल । हिवे जोवो मदनना काम हो |
॥ज ॥ काज ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ मदन सुस्त होइ कहे । भलो कियो उपकार ॥ बचायो उपसर्ग थी। पण सोच भयो अपार ॥ १॥ मैं आयो महाशंकटे । रूप सुंदरी | काज || विन लिया जाता थका। मुजने आवे लाज ॥२॥ जास्यूं तो इणने लइ।
नहीं तो रहूं अवधूत । दाय उपाय कोई करी। शक्ते मिलास्यूं सूत ॥ ३ ॥ शुक कहे | || चिंता तजो । दाखू मैं उपाय ॥ कमवक्ती हुवे चोरकी । कुँवरी हाथे आय ॥ ४ ॥ 5 काम अच्छे हिम्मत तणो । मदन कहे हर्षाय ॥ फरमावो कृपा करी । तेहूं करूं उपाय ||
५॥जे ॥ ढाल ॥ ५ मी ॥ प्रभू त्रिभुवन तिलोरे ॥ यह ॥ मदन जी सांभलोरे । पूर्ण कीजे काम ॥ मद० ॥ राखिये आपणी माम ॥ म ॥ ७॥ एक जोजन रे मायने जी