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म. श्रे.
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१ पाणी
॥ ३ ॥ तब मदन कहे हो सुस्त । सुणो सत्य बाइरे ॥ विन राजपुत्री लिया लार। घरे न जवाहरे ॥ ४ ॥ हूंती आप लग आस । थइ आज पूरीरे । इम नहीं कीजे निरास ।
खण्ड ३ होह सनूरीरे ॥५: खगवनिता कहे एम । उदास न थावारे ॥ एक दुष्कर है उपाय ||मावि विद्याधरनी तुम निपजावोरे ॥ ६॥ इहांथी जोजन बार । आनंदपुर ग्रामोरे ॥ ते हिवडां छे उजाड । मनुष्य विन ठामोरे ॥ ७ ॥ तेहने ईशाण कुण । बट उद्यानोरे ॥ तेहने मध्य बड वृक्ष । सप्त एक स्थानोरे ॥ ८॥ तिण बिचमें एक कूप । अन्धार्यो बाजेरे ॥ तेहनो उर्दक लाय। तो सीजे काजरे ॥ ९॥ मदन कहे आप प्रसाद । ए निपजावूरे ॥ निश्चय | है मुज मन । ते जल लावूरे ॥१०॥ तोतो थासी काम । महारा सहू सिद्धारे ॥ किन्नरी हंकार । बतास्यूं विधीरे ॥ ११॥ आवती पूनम रात । जल लेइ आजोरे ॥ मंत्री
वरीले जाजोरे ॥१२॥ हमने हा बहुवार । अब हम जास्यारे ॥ आवती | पूनम रात । निश्चय आस्यारे ॥ १३ ॥ देखी मदन पुण्यवंत । सहू हर्षाहरे ॥ रती सुन्दरी प्रेमवस । सीस कर ठाइरे ॥ १४ ॥ होसी फते तुज काज । रखो हूंशियारीरे ।। हम कही चडी विमाण । सोलेह नारीरे ॥ १५ ॥ मदनजी कियो प्रणाम । ते उड चालीरे ॥ धरती मदनने चित्त । रहे घरमालीरे ॥ १६ ॥ मदनजी करे विचार । वध्यो वली कामोरे ॥ करस्यूं हिम्मत राख । प्रभू पूरे हामोरे ॥ १७ ॥ सूता देवलमांय । रात
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हाथ