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१ चित्तव्यो
खुटाडीरे ॥ प्राते यक्ष सन्मुख । सीस नमाडीरे ॥ १८॥ मान्यो घणो उपकार । रक्षा कीनीरे ॥ इम आगे हो ज्यों सहाय । हो ज्यों मुज चीनीरे ॥ १९॥ होइ सज तत्काल । आगे चाल्यारे । भयकर अटवी पहाड । नेणे निहाल्या रे ॥२०॥ ते नहीं डरे लगार
हर्षी चल्या जावेरे ॥ करता नित्य फळ आहार । झाड पर रहावेरे ॥ २१॥ थोडा दिन रे माय । नयर दिखायोरे ॥ मनहर तेहना भवन । देख हर्षायोरे ॥ २२॥ आतां तेहने |पास । लगे शून्य कारोरे ॥ एक ही नहीं देखाय । पशू नर नारोरे ॥ २३ ॥ विस्मय थया अती मन । कारण कांइरे ॥ किणने पूर्वी जाय । कोइ न देखाइरे ॥ २४ ॥ इम केइ । करत विचार । आगे चल्या जावरे ॥ नवमी ढाल रसाल । अमोलक गावेरे ॥ २५॥ ॥ ॥ दोहा ॥ तब तिहां दीठो आवतो । जोगी रूपे नर ॥ भगवा वस्त्र माल गल । रूप गुणे अपार ॥१॥ मदनने पासे आहयो। कियो लली नमस्कार ॥ धन्य भाग्य संत भेटिया || जंगल मंगलाचार ॥२॥ मदन पण नमन कर । पूंछे तुम छो कोण ॥ इहां किहां थी आविया । कहो नगर गत होण ॥ ३ ॥ सो कहे रमते राम हम । आ निकला इस जाय ॥ दर्शन संतके देखके । आनंद अंग न माय ॥४॥ चलिये नगर अवलोकिये। |क्यों हुइ उजड एह ॥ कर धर दोनों संग चले । धरता अतिलेह ॥५॥8॥ ढाल ६१. मी ॥ नमूं अनंत चौवीसी ॥ यह ॥ नगरमें पेसतां । राजपन्थ सुविशाल ॥ बहु