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१ हाथ
तुम सरणे आयो । सा ॥ १५ ॥ न चाहूं धन संपदा । म चाहूं मैं नारी ॥ पर उपकार के कारणे । सह संकट भारी॥ सा ॥ १६॥ तिणमां सहाय करे सदा । ए उत्तम आचारो ॥ बृद्ध विचारी आपको । मुज कार्य सारो ॥ सा ॥ १७ ॥ अर्ज एती अव धारीये ग्रहूं आसरो थारो ॥ जो होवे कोइ असातना । गुन्हो क्षम जो महारो ॥ सा ॥ १८ ॥ जे आवे सोले किन्नरी । ते देखण नहीं पावे ॥ दुःख नहीं किंचित देसके । वस्त्र कर आवे ॥ सा ॥ १९ ॥ वस होइ मुज किन्नरी । मुज कार्य सारे ॥ एही इच्छा सिद्ध करो। इम प्रणामी उच्चारे ॥ सा ॥ २० ॥ जाबैठा मूर्ती पाछले । किन्नरी वाट वाट जोइ ॥ ढाल सात अमोलिख कही । पुण्य थी सहू हाइ ॥ सा ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ पूनम पूरो उगियो । पूर्व दिशामें चन्द ॥ चांदणी पसरी चौकमें । नाशी गयो तब अन्ध ॥ १॥ व्योम मार्गे साभल्यो । धुंघरको घमकार ॥ प्रकाश पड्यो देवल विषे । मदन हुयो हुशियार ॥२॥
एटले सोले सांमटी । खेंचरी रूप अपार ॥ षोडश शृंगारे सजी। ऊभी देवल बार ॥३ २॥ मन बच काय ने नम्र कर । आइ यक्ष सन्मुख ॥ कर प्रणामी स्तुती करे। वह विनय, | लेवा सुख ॥४॥ मन रली पूर्ण करण । कला सुधारण काज ॥ एकांत स्थानक लखी।।
सजियो नाटक साज ॥५॥ॐ ॥ ढाल ८ मी ॥ लावणी ॥ आश्चर्य जे कथा रसाल | थकी ॥ यह ॥ कामदेवरी जावण कारण । रंभा खडी ज्यों इन्द्र परी ॥ चार सारंगी
常常依然常常然;