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१ मिली
१ साडी
क्रीडा करे भय पखे ॥ शंक न किनकी सहू मिली नारी । ख्याल गम्मत में रही अडी ॥ हो ॥ ५ ॥ मदन देख कर आनंद पाया । आज मिला मौका भारी ॥ अपूर्व नाटक ने निरखा। क्या सोहे किन्नरी नारी ॥ क्या नृत्य ? क्या गायन इनका ? क्यातान ? रहे आश्चर्य पा ॥ मजा अनोखा मुजको बताय । भद्रसेण शुककी कृपा | अब वक्त कार्य साधन की कह्या प्रमाणे यह जंडी || हो ||१६|| पडी चरण यक्षराज के बोले । सरणी है श्वामी थांरो ॥ लुपते २ चले अधर जब । छिपते झाड जो अन्धारो ॥ वस्त्र पास आ चन्द्र चांदणे नीलाम्बर ओलख लिया || लघुलघवी कला प्रभावे । हरण करी देवळमें गया ॥ बैठे वे फिकर खुशहो दिल में। दोनों पटको लिये जडी ॥ हो ॥ ७ ॥ जलक्रीडा कर सबी सुंदरी । आह तब वावडी वारे ॥ शीतल पवनसे अंग थरथरे । दोनों वहा भीडी जारे ॥ निज २ तंतू पहर लिये सब । रति सुन्दरी नग्न रही || साडी मिली नहीं चौकस करतां ॥ कहो बेन किसने ए लही ॥ ऐसी हाँसी मत करो कोइ । यों बोले है नग्न खडी ॥ हो ॥ ८ ॥ शीघ्र बतावो साटिका मेरी । शीत अंग थर २ काँपी । ओर मस्करी बहुतेरी करी । तोभी जरा तुम नहीं धापी ॥ सह कहे बाइ सम तुमारी । हम नहीं लीवी तुम साडी ॥ निज २ सहू तंतू झटकारी । अंग अंतर दिये देखाडी ॥ फिर कोण लेगया | मेरी ओडणी । येही फिकर है बहुतबडी | हो ॥ ९ ॥ सहू मिल ढूंढे चारुं कानी ।