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१ वस्त्र
बजाइ गंध लगाइ । शेख पूर माहें घाल्या जी ॥ श्री ॥ १८ ॥ मदनजी चिंते ए रचना । आश्चर्यकारी देखाइ ॥ रूप जोगीको काम भोगीका । क्या ए ढोंग लगाइजी ॥ श्री ॥ १९ ॥ ऐसी विषम जाय ए रचना । किण विध इण जमाइ ॥ किस्यो करछे एकांते रही । देखूं रहने होइ हो ॥ श्री ॥ २० ॥ एतो जोगी है करामाती । सिद्धी साधन हारो । देखा आगे किस्यो करे ए। मौको मिल्यो ए सारोजी ॥ श्री ॥ २१ ॥ तंतूछेद माहें स्यूं मदनजी । देखी रह्या तमाशो ॥ तीजा खन्ड की ढाल दूसरी || अमोल करी प्रकाशोजी || श्रोता ॥ २२ ॥ * ॥ दोहा ॥ पूजन करी निवृत्त हुयो । जे जोगी तेवार || क्षुधा त्रप्ति कारणें । भोजन करे तैयार ॥ १ ॥ एक | गुफा पट खोलने || आटो दाल निकाल ॥ घृत सक्कर दी सह ॥ तिन तणी ते काल ॥ २ ॥ दाल बाटीने चूरमो । कियो तदा तैयार ॥ घृत पूरित सजी साजते । देखी करे विचार || ३ || दो हमतो प्रत्यक्ष छां । करवा भोजन भोग | किम निपाइ तीनकी । | देखूं ए संयोग ॥ ४ ॥ तीजाने देख्या विना । जागृत होणों नाय ॥ इम निश्चय कर सो रह्या । जोवो तीजो कुण आय ॥ ५ ॥ ढाल ३ जी ॥ आउखो टूटाने सान्धो को नहीं रे ॥ यह ॥ भुक्त तैयार हुयां थकांरे । जोगी मदनने जगायरे ॥ उठरे भोजन करी लहरे । सरल सादे बतलायरे ॥ १ ॥ पत्तो लागो कुँवरी तणोंरे ॥ आं ॥ मदन मन हर्षायरे ॥