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पहाड
म. श्रे. मठ देखण मन चावे हो ॥ श्री ॥ ७ ॥ एक दो दिन सेवा करके । कहोगे ,
खण्ड ३ 1 तो फिर जास्यूं ॥ पुण्य जोग मिल्यो संत समागम । मूक्यो जाय न महास्यूं हो ॥ श्रो *८॥ जल कुम्भ ए मुजने आपो । मठ लगे पहोंचावू ॥ महारे सामे आप उठावो । मैं तो 2 घणो शरमावूजी ॥ श्री ॥९॥ बल जोरी घट लियो छोडाइ । करी घणी नरमांड जोगी देख के आश्चर्य पाया। चिंते करणो काइ हो ॥ श्रो॥ १० ॥ यो बालने वली इके लो । करैगा क्या उत्पातो ॥ राते इसका मन समजाके । कल करूंगा जातो हो ॥ श्रो॥ ११॥ महा विषम झाडी में चाल्या । मोठा शैल मझारे ॥ आगे पाछे फिरता आया ।
एक गुफाने द्वारे हो ॥ श्रो ॥ १२ ॥ जोगी आगल माहे पेठो । मदनजी तसा 5 लारे ॥ पंक्तिया थी नीचा उतर्या । महान्धकार मझारे हो ॥ श्री ॥ १३ ॥ अन्ध गुफा
में आगे चाल्या । थोडी दूरे जातां । प्रकाश देख्यो चौगान आयो । सुन्दर सदन देखा ता हो ॥श्रो ॥ १४ ॥ घटार्यो मटार्यो निर्मळ । आरस पहाणे जडिया ॥ विछायत विछी तिहां निर्मळ । आसण बहुविध पडियाजी ॥श्रो ॥ १५॥ तिणपे जा जोगीजी बैठा । कहे मदनसे तारे ॥ जल घट इस ओटेपे धरदे । मदन धरदीयो जारे हो ॥ श्रोता ॥ १६ ॥ एकांते जा बैठा मदनजी। सरकत २ गुडिया ।। कपटनिद्रा ये धोरण लागा । महीनवस्त्र पांघरीया जी ॥ श्रो॥ १७॥ जोगी बैठो इष्ट पूज वा । गोफणी यां निकाल्या ॥ घंटा