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साष्टांग दंडवत कर । कहे आज धन्य भाग । जंगल में मंगल भयो । साचो तुम वैराग्य |॥ २ ॥ अव चरण छोडू नहीं । करस्यूं श्वामी सेव ॥ कृपा करी सेवक परे ! जल घट दो मुज देव ॥ ३॥ गुरु कृपाथी पामस्यूं। आत्म अनुभव ज्ञान ॥ पारस संग सुवर्ण वणु
ण जोग निध्यान ॥४॥ इत्यादी करे विनंती। छोडे नहीं चरणार ॥ जोगी देख आश्चर्य भयो । यह विनीत सिरदार ॥ ५ ॥ ढाल २ जी ॥ गोपीचंद लडका ॥ | यह०॥ श्रोता गण सुणिये । मदन तणी करामातने ॥ ७ ॥ देख विनय भक्त भावना | सरे । जोगी कहे सुणो वच्चा । हम जोगी एकांतमें रहते । संग नहीं करते कच्चा हो
॥ श्रोता ॥ १॥ तूं कोण ह्यां कैसे आया । कहां जाणेकी आशा ॥ यह जोगी के प्रश्न में | सुण के मदन करे प्रकाशा हो ॥ श्री ॥२॥ बाल वैरागी मैं हूं श्वामी । गुरु नहीं मुज माथे ॥ फिरता २ आ निकलियो । अब रहूंगा तुम साथे हो ॥ श्रो॥ ३ ॥ सत्य बचन हे श्वामीजी का। जोगी एकांत रहणा || गृहस्थी का का संगन करणा । ज्ञान ध्यान |चित धरणा हो । श्रो ॥ ४ ॥ आप जैसे असंग्गी देखके । पाया मैं आणंद ॥ गुरु जी मुज ऐसे चाहिये । सदा सुखदाइ सम्बन्ध हो । श्रो॥५॥ जोगी कहे हमतो नहीं है रखते। चेला मेला कोइ ॥ और जोगी है बहुत जगत में । करना गुरू तूं जोइ हो ॥ श्रो॥ ६॥ मदन कहे सामे आह गंगा । छोड दूर कोण जावे ॥ चैला तो गुण देख के करणा।