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हो ॥ वक्त पच्या सहूना गुण जाण्या । मतलबी सहूनी सगाह हो ॥ उत ॥ ४॥ इत्यादी नृप वयण सुणीने । सभा सहू अकलाइ हो ॥ निजथी काम न होतो देखी । पर पर रखा गुडाइ हो ॥ उत ॥ ५॥ तुम पराक्रमी तुम गुणवंता । तुम छो नृपने नेडाइ हो ॥ तुमने नृपने प्रीती घणेरी ॥ तुम जागीरी पाइ हो ॥ उत ॥ ६ ॥ इम कर | तां बहुवक्त विहाणी । तब ज्यूंना मंत्री अकुलाइ हो ॥ इर्षा लाइ मदनने ऊपर । दाबी | इण मुज ठकुराइ हो ॥ उत ॥ ७॥ चिंते इणने दुःखमें न्हा । राय राख्यो छे फुलाइ हो ॥ मुज थी एह मरोड धणी करे । पण अब थासी सिधाइ हो ॥ उत्त ॥ ८॥ उठ कहे | सहू थी आपणी सभामें । मदन जवैरी सवाइ हो ॥ बलमें पूरा काममें शूरा । मुख्य | प्रधान कहाइ हो ॥ उत्त ॥ ९॥ए बुद्धवंता पत्तो लगासी । निश्चय लांसी बाइ हो ॥ येही छे इण कामने जोगा। जावे तो काम थाइ हो ॥ उत्त ॥१०॥इम सुणी मदन जी समज्या। ए बोल्या इर्ष भराइ हो ॥ मुजने दुःखमें न्हाख्या चावे । ऊंचा एम | चडाइ हो ॥ उत्त ॥ ११ ॥ पण आपने तो सीधी लेणी । काम जिनथी सिद्ध थाइ हो ॥ खम्भ ठपकारी उभा थइया। नृपने सामे आइ हो ॥ उत्त ॥१२॥ रायजी पण समज्या मनमें । करे जवैरीनी इर्षाइ हो ॥ परदेश भेजे दुःखमें न्हाखवा । पण धन्य | जवैरी तांइ हो ॥ उत्त ॥ १३ ॥ नामही लेता तत्क्षण ऊभा थया । डरन जरा लाइहो ॥