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खंड २
|तंतू थी अंग ढांकने । मदननी लारे जाय ॥ सु ॥२॥ मध्य बजारे आवियाजी । लोक में बहु मिल्या जोय ॥ विके जागा पंच खंडनी । मोल घणो न लेवे कोय ॥ सु ॥ ३ ॥ मदन तिहां उभा रह्या जी । कुँवरी थी पूंछे एम ॥ कहो तो ए जागा लेवू । सब बातरो में | पावसो क्षेम ॥ सु ॥ ४ ॥ कुँवरी मुद्रा दी तेहने जी । बेंची जवेरीने जाय ॥ चाहिता दाम लेइ करी । बच्या ते जमा कराय ॥ सु॥५॥ मोल लीवी तेह जायगाजी। शुभ मुहूर्ते ते वार ॥ छेली मजले सुंदरी ने । सुखथी दी बैठाय ॥ सु॥ ६ ॥ जे माल कवरी मंगाहयो जी। ते तर्त दियो लाय ॥ दास दासी राख्या घणा। जे पोताने आया
दाय ॥ सु॥ ७ ॥ सवाइ नौकरी दीवी सबने । सहूने एकांते लेय ॥ मधुर वयणे शिक्षा में दिये । वली लालच अधिको दय ॥ सु ॥ ८ ॥ काम करजो इच्छा जिसो । रह |
जो तस हुकमरे मांय ॥ महारी बात तिण आगलें । किंचित ही करनी नाय ॥ सु॥९॥ # सोगन करा पक्की करी । फिर आया दूजे मजल ॥ बैठक राखी आपणी । जिहां कुँवरी
न आवे चल ॥ सु ॥ १० ॥ थापण राखी रकम थी जी । लाया सिरे पोशाक || में ग्रहणा वस्त्र ओपता जी । देव सरीखा पाक ॥ सु ॥ ११ ॥ दोय दास साथे लेह जी । Kआय जवैरी बजार ॥ मौकाकी दुकान देखने । भाडे लिवी ते वार ॥ सु॥१२॥ गादी
तकिया जमाविया जी ॥ राख्या मुनीम हुशियार ॥ माल घणो खरीदियो । सहू शाभार
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