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म.श्रे.
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२ चंद्र
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प्रमादको होवे टालो हो । पुण्य ॥ पूनम पूरा चांद प्रकाश्या । भूमी व्याप्त तम सह हास्या हो ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ जिम २ शशी ऊंचो आवे | तिम २ सौम्य प्रकाश बडावे हो ॥ पुण्य ॥ कांतीजमी मोती पे आइ । दोन्यारी एक जोती थाइ हो ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ तब मोती बघतो देखावे । जिम २ इन्दू उच्चज आवे हो ॥ पुण्य ॥ मध्य अंतलिखे जब आवे । मोती कुम्भप्रमाणे देखावे हो || पुण्य ॥ १० ॥ तब तिण माहे थी पाणी छूटो । जाणे बेवण लागो घडो फूटो हो । पुण्य ॥ ताम्रपत्र पे बहाये । तेहने शीतल वायु फेलायो हो | पुण्य ॥ ११ ॥ तब मदनजी अवसर जोइ । ते घडो सरकाइली धोइ हो ॥ पुण्य ॥ तब मूल रूपे मोती थइयो । नृप मन आश्चर्य भइयो हो ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ तब जबैरी कहे राय तां । रात्र बहु गई निद्रा आइ हो ॥ पुण्य ॥ दोनों सूता तिण ठामो । सुखे निद्रा आइ जामो हो । पुण्य ॥ १३ ॥ निशा व्यतिक्रान्त थाइ । दिनकर तब प्रगटाई हो || पुण्य ॥ जागृत हुवा ते जामो ॥ मदन अने नरस्वामी हो ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ जो चांदणी मांह । सब पीली २ देखाइ हो ॥ पुण्य ॥ नरवर आश्चर्य पाया । ताम्रपत्र लिया करम यां हो ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ उत्तम कंचन जो । अि हिडे हर्षित होइ हो ॥ पुण्य ॥ मदन कहे नरमाह । एतो एकही गुण देखाइ हो ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ एहवा गुण छे एमा सोला ॥ ते किम जाणे नर भोला हो ॥ पुण्य ॥
खण्ड २
१ अंधारा
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३ रात्री