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२ पाणी
३ बैठे
॥ ३ ॥ द्रबे रूप घट नीर भर । क्षेत्र ऊंच अछांय ॥ काले शरद पूनम निशी । भावे पुण्य सवाय ॥ ४ ॥ सुणी भूपतव खुशी हुवा । मिलशी सहू संजोग || ठेरावो वैपारीने ॥ | देइ सहू सुख भोग ॥ ५ ॥ ढाल ९ मी ॥ भवियण भाव सुणो ॥ यह ॥ राजाजीने मदन जवैरी । दोन्यारी प्रीती घणेरी हो ॥ पुण्यना फल मीठा ॥ बहुवार मदनने बुलावे ॥ ए कीने बात वणावे हो ॥ पुण्यना फल मीठा ॥ १ ॥ इम करतां शरद पूनम आइ । तब नृप कहे जवैरी तांह हो ॥ पुण्य ॥ मुक्ताफल गुण देखाडो । तुम मननी कूंचीं काहाडो हो ॥ पुण्य ॥ २ ॥ कहो ते वस्तु मंगावूं । कहो ते साज जमावूं हे ॥ पुण्य ॥ कहे जोहरी आजरी राते। मोती गुण थासी विख्याते हो ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ तांबाना पत्रा मंगाइ । देवो चांदणी उंची मां बिछाइ हो ॥ पुण्य ॥ रज मेल कलंक हरीजे । बरोवर शुद्ध जाय पाथरीजे हो ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सह मध्ये रजत घट मेलो । स्वच्छ सुघाट उदके भरलो हो ॥ पुण्य ॥ इम सामग्री जमवावो । इष्ट पूरसी आपणो उमवो हो ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ जेजे मदन बताइ । राय ते ते सहू कराइ हो ॥ पुण्य ॥ तब अस्त थया दिन राया || नृप मदनना मन उमाया हो ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ दोनों आया आकाशी मांह । सह दरवज्जा बंध कराइ हो । पुण्य ॥ सुखासन त्या विछाइ ॥ दोनों आनंद घर निसीजाइ हो ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ बुद्धी गुण बृद्धी मांड्यो ख्यालो । जेहथी
१ चांदीक