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| परण्यो राते । आग्रह कराइ ॥ कर्म ॥ ८ ॥ इम सुणी शाह अती घबराया । निकल बाहिर भाई ॥ धारी बात अनोखी सुणने । कालजो धर्राई ॥ कर्म ॥ ९ ॥ करी प्रणाम चाल्या मदनजी । कहे भटने आइ ।। मैं परण्यो छू राते जाइ । राजकन्या तां ॥ कर्म ॥ १० ॥ सुणी आश्चर्य सहूजन पाया । देखे सिपाइ ॥ रूप तेज बुद्ध साहस पूरो । विस्मयते पाइ ॥ कर्म ॥ ११ ॥ भेद बात कोई नहीं जाणता । ते अब जाण्याइ ॥ राजकन्या से करी अनीती । मोटो ए अन्याइ ॥ कर्म ॥ १२ ॥ पण अखंभो यह छे भारी । जरा न डर पाइ ॥ उपतीने | योहाथे आयो देखो सुराइ ॥ कर्म ॥ १३ ॥ इमं अनेक बातां करता। पकडी लेजाइ ॥ नगर रक्षक के पासे लाया । बात दी दरसाइ ॥ कर्म ॥ १४ ॥ कोतवाल फिर पूंछचो ते हने । तिमहीज सुणाइ ॥ तलवर पण आश्चर्य अतिपायो ॥ साचो ए जणा ॥ कर्म ॥ १५ ॥ खबर पहोंचाइ नृपने पासे । चोर जे पकडाइ || आप कहो तो हाजर लांवा । हुकम ते करांइ ॥ कर्म ॥ १६ ॥ नृप कहे हम ऐसे दुष्टका । मुख न देखाइ ॥ परवारो बधस्थान | ले जाइ | सूली दो चडाइ ॥ कर्म ॥ १७ ॥ नृप हुकम जाणी भट पासे । मदनने बन्धाइ ॥ मदन कहे क्यों बन्धो कहो तिहां । चालू हूं भाई ॥ कर्म ॥ १८ ॥ कणेर माल डाल | गले में । रतांजणी लगाइ || फूटा ढोल तस आगे बाजे । मशाणे लेजा ॥ कर्म ॥ १९ ॥ सहश्रागम जोवाने मिलिया | देखी विलखाइ ॥ मदन मनमें फिकर न किंचित । रा
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