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चिन्ता हुई चित मदनने । अब किहां जोवूं ठिकाण ॥ च ॥ १३ ॥ बैठो वाहिर आयने । तब दासी आइ तस पासजी ॥ चल शीघ्र मूर्ख मुजसंगे । बाइ बोलवे रखवा दास ॥ च ॥ १४ ॥ कहे मदन हूं तब चलूं । चार पइसा मुजने अपायजी ॥ दासी हूंकारो भर्यो । साथे हुयो अतिहर्षाय ॥ च ॥ १५ ॥ नाचतो कुदतो मारगे । वली उडातो धूलजी ॥ चेटी जोइ चिंतये । बाइ किन चाले लग्या भूल ॥ च ॥ १६ ॥ रायकुंवरी गोवे रही । मूर्ख आवंतो जोयजी ॥ खुशी हुई मनमें घणी । इण थी कारज म्हारो होष ॥ चं ॥ १७ ॥ हर्षे बुलाइ कने लियो । दिया खावाने पक्कानजी ॥ कहे | सदा तुम इहां रहो । तुज कह्यो करस्यू प्रमान ॥ च ॥ १८ ॥ मूर्ख कहे हूं रेवस्यू । जो खवासो ऐसा मिष्टान्नजी ॥ रातरा रहवो नहीं बने । मा बाप करे छे तान ॥ च ॥ १९ ॥ कुंवरी कहे नित्य आपस्यूं । माग्यो सरस मैं आहारजी ॥ रातरो काम न माहेरे । फक्त | भुक्तावा समाचार ॥ च ॥ २० ॥ खुशी : हुइ मदन रह्यो । करवा इच्छित कामजी ॥ दूजी ढाल दूजा खंडकी । कहे अमोल पूगे किम हाम ॥ च ॥ २१ ॥ दोहा ॥ गुण सुंदरि एकांत में । मूर्खने इम केय ॥ मुज मननी तुजने कहूं । ज्यों भेदन दूजो लेय ॥ १ ॥ मूर्ख सोगनखा कहे । नहीं तुम हुकमने बार ॥ कहस्यो सो कहस्यूं सही । नहीं कहा करूं उचार ॥ २ ॥ कुँवरी कहे प्रधान को । ओलखे छे तूं गेह ॥ मूर्ख कहे जाणुं अधुं । ते दिन