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| दाख्यो तेह ॥ ३ ॥ हां तेहीज कुँवर तणें । छाने जाइ पास ॥ ये पत्र लिखने देवू । तूं मैं
गुप्ते दीजे तास ॥ ४ ॥ दो तीनदा समजाइयो । तब भरियो हुंकार ॥ प्रेम पत्र लिखवा में लगी ॥ गुणसुंदरी तेवार ॥ ५॥ ढाल ३ री ॥ में मुख देख्यो गोडी पारस को ॥ यह ॥
देखो चतुरनर मदन परपंचने । करे है कैसो उपाय जी ॥ आं॥ अहो प्राणेश्वर आप विरह थी। तरशे महारो तनजी ॥ परवश पणे घरमें रही छं। पक्षी ज्यों: जी ॥ देखो ॥ १॥ पांडयाजीने वैम पड्याथी । पहोंचाडी मुज गेहजी ॥ तुम मुज मन
मन्दिरमा रमियां । कैसे निभावू नेहजी । देखो ॥ २ ॥ आज लगण दिल खोल बोल 5 रणरो । अवसर मिलियो नाय जी ॥ हिवणा बाततो छ कागदथी। सोधो कोइ उपाय
जी ॥ देखो ॥ ३॥ दियो कागद मूर्खने हाथे । ते आयो जिन गेहजी ॥ वांचीने परमानंद | पायो । उत्तर इणविध देयजी ॥ देखो ॥ ४ ॥ तुम विरह मुज साल समाणे। में खटके हिया मांय जी ॥ तुम उपाय बतावो ते करूं । मुजनें न सूजे उपायजी देखो।
५॥ वंदी खामण कर धर्यो खीशे । नाणो लेकर मांय जी ॥ आयो राजपुत्रीने पासे ॥ में कूदतो हर्ष भराय जी ॥ देखो ॥ ६॥ कहे मुजने इनाम दियो ए । बुलायो नित्य एम
जी ॥ कुँवरी उमाइ उत्तर किस्यो लायो । छे किस्यो मुजपे प्रेमजी ॥ देखो ॥ ७ ॥ मूर्ख | कहे फरेब छे पूरो । कागद दीनो हाथ जी ॥ कह्यो एकांत जाइने बांचजो । मनमें राख
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