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खोली बांची आनंद पाह। पाछो देवे जवाब जी॥ धन तणी तो फिकर न करनी ।
खण्ड २ | लास्यूं तुरंग सिरे आब जी ॥ देखो ॥ १९॥ अन्धारी चउदस प्रहर राते । मिलसां
कालीका स्थानजी ॥ मूर्ख पत्र घर आइ बांची। हर्षायो आस्मान जी ॥ देखो ॥ २० ॥ 1| लिख्वी उत्तर तैयार हमेछां। लेइ मोहर कर माय ज
पालो | हँसतो दीनार बताय जी ॥ देखो ॥ २१ ॥ पत्र दियो कुँवरी लियो झबकी। बांची मन || उमंगाय जी ॥ उपाय करवा लागी चटपटी ॥ तुर्त दूं साज सजायजी ॥ देखो ॥ २२॥ उपाय सहू जमायां मदन जी ॥ ढाल तीसरी माय जी ॥ दूजा खन्डकी कही अमोलख । आगे सुणो चितलाय जी ॥ देखो ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ गुण सुन्दरी घुडशालथी। २६ अश्व दो उत्तम जोय ॥ लाइ निज घर बान्धिया । मूर्ख हाथे सोय ॥१॥ गुप्त करे नित्य || तेहनी । खान पान संभाल ॥ मूर्व पास करावे ॥ निजरे निज निहाल ॥ २ ॥ हेम जडित रत्ना तगा। गेणा नगदी धन्न ॥ अल्प भार बहु मोलका । संग्रह कियो में प्रच्छन्न ॥ ३ ॥ त्रयोदशी ने पत्र लिव । मूर्ख हाथ पठाय ॥ काल रातका निश्चय। आजो कालिका ठाय ॥ ४ ॥ तुम आज्ञा प्रमाग में । कियो वंदोबस्त सष ॥ पाछो उत्तर दे मदन । देरन म्हारे अब ॥ ५। ढाल ४ थी ॥ कुँवर अभय बुद्ध को भंडारी ॥ यह ॥ | मदन जी कलावंत भारी । निज कारज संपादन कारन । करे कैसी हुशियारी ॥ ७ ॥