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म.श्रे.
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१ जंगल में
१ पास
|मुख मुलकाइ ॥ कर्म ॥ २० ॥ पुण्य पसाये जोग वण्यो शुभ । ते सुणो चितलाइ || ढाल पन्नरमी ऋषि अमोलक । कर्मगती गाइ ॥ कर्म ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तिण अवसर धर्मजय ऋषि । करण चरण गुणधार ॥ मांस २ तपस्या करी । करे आत्म उद्धार ॥ १ ॥ कार्नन में सदा रहे । मांस लगे करे | ध्यान || पारणे आवे ग्राम में । लेइ शुद्ध अन्न पान ॥ २ ॥ संतोषे मनु देहने । पुनः जावे वन मांय ॥ इम हिज तिण दिन आविया ॥ मेहंदपुरीनें पाये ॥ ३ ॥ गोचरी वक्त हुई नहीं । जाणी रह्या तरुतल || ज्ञान ध्यान में रम रह्या । मेरु परे अचल ॥ ४ ॥ तिण अवसर तिण मारगे । मदन सह परिवार ॥ आया अचिंत्य ते पेखतां ॥ दीठो मुनी दीदार ॥ ५ ॥ ढाल १६ मी ॥ श्री जिन आया हो सोरठ देश मझार ॥ यह० ॥ मुनिवर दीठा हो | तब तिहां मदन कुँवार || रोम २ हुलसित धया ॥ धन्य घडी महारी हो । दीठा दीनदयाल || चरण धरण मन उमया ॥ १ ॥ तब तलवरने हो ॥ कहे थंभो इण ठाम ॥ दर्शन लेवूं गुरु | राजना । ते संग रहियो हो । आया ऋषिवर पास || पहलीही कीजे धर्मकाजने ॥ २ ॥ सविनय वंदन हो । नमन कियो तीन वार ॥ कर जोडी ऊभा रह्या ॥ धन घडी म्हारी हो । अंत समय महाराय ॥ दर्शन दीठाजी सहू पापजगया ॥ ३ ॥ इम सुण वाणी हो | साधु आश्चर्य पाय || ध्यान पारीते इम उच्चरे ॥ अंतः सम्यो भाइ हो । किम
खण्ड १
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