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जेहवो जेहनो लेख । तेह वो नीपजे । अमोल कहे हुई जिशी जी ॥ १८ ॥ ॥दोहा॥
खण्ड १ दरबारे दीधो घणो ॥ सेठजी तबही माल ॥ लाभ घणो उपराजियो । मदन पुण्ये ते १४ में काल ॥१॥ हा सेठजी अतिघणा । जाणी मदन पुण्यवंत ॥ पाछा आया निज घरे। ,३ रातको
मदन साथ हरखंत ॥ २॥ सन्ध्या समय सेठथी । मदन करे प्रकाश ॥ आज जामनी में जाइने ॥ रहस्यूं देवी आवास ॥ ३ ॥ साधन करस्यूं मंत्रनो ॥ छ जरुरी काम ॥ आज्ञा दीजे |
मुज भणी । प्राते आस्यूं आम ॥ ४ ॥ सेठ सुणी कहे कीजिये । जिम सुख तुमने थाय ॥ में शीघही प्राते आविये । जिम हममन हर्षाय ॥५॥ ढाल १२ मी ॥ आठ कुवा नव बाबडी,
पणी हरीरे ॥ यह ॥ शीघ्रआया तब वागमें ॥ मदमेश्वरजी ॥ मनमें धरी आणंद ॥ हो मन मोहनजी ॥ अम्ब कौचर थी कहाडियो॥ मदनेश्वरजी ॥ वेणुदेव वसुनंद ॥ हो , १४
मन ॥ १॥ कला जमाइ तेहनी । मद० ॥ यथायोग्य तत्काल ॥ हो मन ॥ आरूढ हुवा | २ सवार # सावध पणे ॥मद०॥ गया गगन गत चाल ॥ होमन ॥ २ ॥ आया राय सदन परे । मद॥ | चौगिरदा फिर जोय ॥ हो मन ॥ वंदोवस्त पुक्त देखियो ॥ मद ॥ज्यों भेद न प्रकट होय ॥
हो मन ॥३॥ खुल्ली वारीने मारगे ॥मद०॥ पेठा मांय मदन ॥ हो मन ॥ कुँवरी झट ऊभी हुई ॥ मद ॥ श्रमित हर्ष वदन ॥ हो मन ॥४॥ सत्कारी मधुरी लवे ॥मद०॥ पावन कीघो भवन ॥ हो मन ॥ कृतार्थ करी मुज भणी ॥ मद ॥ दे बल्लभ दर्शन ॥ हो मन ॥५॥ जब
१ गरुड