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म. श्रे.
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करूं मुज मन की पूरी । तत्क्षण हुवा तैयार ॥ देखो ॥ १ ॥ कर प्रणाम सुतार तातने । | हुवा गरुड असवार ॥ यथाविधी से कला फिराइ । उड्यो गगन ते वार ॥ देखो ॥ २ ॥ वन गिरी ग्राम अनोखा जोतो। फिर तो इच्छा चार || महंदपुर के पासज आया। दीठो शेहर | मनोहार ॥ जो ॥ ३ ॥ तिण वाहिर एक बनमें उतर्या । गरुड कला संवार । बड की कोचर मांही छिपाइ । आया गाम मझार || देखो || ४ || देवपुरी सम नगरी देखी । भवन विचित्र प्रकार || ऋद्धि सिद्धिये भरी पूरी । सुशोभित बजार | देखो ॥ ५ ॥ एक हाट देखी अति मोटी । माल मंड्याकेइ सार । काम करे तिहां मालक बहुला । श्रृंगारे झलकार || देखो ॥ ६ ॥ ऊंची गादी तकिया टेके । बैठा सेठ सिरदार | वृंदाला रूपाला रंगीला । भूषण वस्त्र श्रृंगार || देखो || ७ | मदन जी ऊभा रह्या तिहां आ । जाणी श्रेष्ट उदार ॥ सेठ सत्कारी पास बैठाया ॥ जोह दिव्य अनुहार || देखो ॥ ८ ॥ मदन पुण्य प्रतापे हाटे || थोडी देर | मझार ॥ स्वपियो माल घणो ते अवसर । इच्छित नफे वैपार ॥ देखो ॥ ९ ॥ ते देखीने सेठ चितवे । घरी आश्चर्य अपार ॥ इसो माल कदी नहीं खपियो । आज ही तूठा किरतार || देखो || १० ॥ या पुण्याई इणी कुँवर की । पगतणे प्रसार । जो सदा रहेये मुज पासे । तो भराय भंडार || देखो ॥ ११ ॥ प्रेम धरीने पूंछे कुँवर थी । किणी ग्राम रहनार ॥ जात पांत थाणी प्रकाशो । इहां आया किण द्वार || देखो ॥ १२ ॥ मदन कहे हूं छू परदेशी । वाणिक घर
खण्ड १
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