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गाथा परम विजय की
'अकेले क्या करोगे ?'
'मैं क्या करूंगा, वह तुम्हारे सामने आ जाएगा। तुम्हें डर है कि मैं बालक हूं। तुम डरो मत। मैं वह करूंगा, जो शायद कोई कर नहीं सकेगा । '
व्योमगति-'कुमार! तुम इस नीति सूक्त को जानते हो । जो करते हैं बोलते नहीं हैं, वे उत्तम आदमी होते हैं। जो करते हैं और बोलते हैं, वे मध्यम आदमी होते हैं। जो करते कुछ नहीं, केवल बोलते हैं, वे अधम होते हैं।
कुर्वन्ति न वदन्त्येव, कुर्वन्ति च वदन्ति च । क्रमादुत्तममध्यास्तेऽधमोऽकुर्वन् वदन्नपि ।।
कुमार! क्या तुम्हें नीति का यह वचन ज्ञात नहीं है ? '
नीतिकार ने मेघ को सामने रखकर कितना मार्मिक कथन किया है- बादल आकाश में आए। गर्जन करने लगे। चातक ने एकदम मुंह ऊपर कर दिया। क्योंकि चातक नीचे का पानी नहीं पीता । बादल से जो जल की बूंद गिरती है, उसका पानी पीता है। जैसे ही मेघ ने गर्जन किया, चातक एकदम ऊर्ध्वमुख हो गया। तब कवि ने कहा
रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्रक्षणं श्रूयता मंभोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।
केचित् वृष्टिभिराद्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचन वृथा, यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ।।
चातक! तुम भोले हो। जो भी बादल आते हैं, तुम मुंह ऊपर कर दीन वचन बोलने लग जाते हो। तुम मेरी बात सावधान होकर सुनो! सब मेघ समान नहीं होते। कुछ केवल गरजते हैं, बरसते नहीं । इतना गरजते हैं कि दूसरों के कानों को बहरा बना देते हैं। कुछ बादल ही ऐसे आते हैं, जो बरसते हैं, धरती को भिगो देते हैं। इसलिए तुम परीक्षा करो, हर किसी बादल के सामने दीन वचन मत बोलो।
व्योमगति ने कहा——कुमार! मैंने तीन प्रकार के लोग बता दिए। तुम पहले ज्यादा मत बोलो। तुम क्या करोगे, पता चल जाएगा।'
जम्बूकुमार बोला- 'मैं बहुत कम बोलता हूं पर जो बोलता हूं, वह होकर रहता है। मुझे लगता हैतुम्हारे भीतर आत्मविश्वास नहीं है। तुम कैसे विद्याधर हो ? जिसमें आत्मविश्वास नहीं, संकल्प की शक्ति नहीं, दृढ़ अध्यवसाय नहीं, वह कैसे सफल होगा ? मुझे ये सब प्राप्त हैं इसलिए तुम चिन्ता मत करो । '
विद्याधर जम्बूकुमार के मनोबल और आत्मविश्वास को देखकर चकित रह गया। वह जम्बूकुमार को उतरने से रोक नहीं सका। जम्बूकुमार विमान से नीचे उतर गया। उसने विद्याधर व्योमगति से कहा- 'तुम्हें जहां जाना है, चले जाओ। मुझे यहीं छोड़ दो। मुझे कोई जरूरत नहीं है। '
विद्याधर ने सोचा-मैं एक नवयुवा को शत्रुओं के बीच अकेले छोड़कर कैसे चला जाऊं ? कुछ हो गया तो सम्राट् श्रेणिक क्या कहेंगे? हमारे होनहार युवा नागरिक को तुम ले गए और यह दुर्दशा कर दी।
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