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वर्ष]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [९ प्रमुख व्यक्ति गिने जाते हैं और उनके घरमें भी बहुत कुछ परंपरागत श्रद्धाका वातावरण बना हुआ है। ऐसी स्थितिमें मेरा सम्बन्ध इनके उद्दिष्ट कार्यमें कहां तक सुघटित हो सकेगा। मेरा आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि बहुत कुछ असांप्रदायिक है। संप्रदायरूढ मेरा कोई व्यवहार नहीं है। न किसी संप्रदाय विशेष पर मेरी अनन्य श्रद्धा है । जैन धर्मके सिद्धान्तोंके प्रति मेरी जो कोई भक्ति और श्रद्धा है, तो वह अपने स्वतंत्र विचार और मननके परिणामसे जैसी बन सकती है, वैसी है । संप्र. दायगत परंपराकी वह अनुगामिनी नहीं है। मेरी आंतरिक मनोवृत्ति समाजवादी विचारों और आचारोंकी ओर झुकनेवाली है। सिंघीजीको मेरी ऐसी विचारधारा और जीवनचर्याका ठीक पता है या नहीं-इसकी मुझे कोई कल्पना नहीं थी। सो मैंने उनसे अपने इस स्वगत विचारका भी यथायोग्य मनोभाव प्रदर्शित कर देना चाहा और उनके विचारोंका आभास ले लेना चाहा ।
सिंघीजीके व्यक्तित्वका मेरे मन पर प्रभाव तसरे दिन भोजन किये बाद हम दोनों फिर उसी तरह वार्तालाप करने बैठे।
५प्रसंगवश मैंने उनसे उपर्युक्त सभी विचार प्रदर्शित कर दिये जिनको उन्होंने बड़ी गंभीरता एवं एकतानताके साथ सुना। उत्तरमें उन्होंने अपने भी विचार बहुत कुछ विस्तारके साथ कह सुनाए जिससे मुझे विश्वास हुआ कि सिंधीजी धार्मिक अन्धश्रद्धाके बिल्कुल अनुगामी नहीं है। समाज और देशकी प्रगतिके वे बडे इच्छुक हैं। लोगोंकी धार्मिक और सामाजिक मूढताका उन्हें बड़ा दुःख है और इसीलिये अन्यान्य रूढिप्रिय धनिकोंकी तरह उन्होंने अपने जीवनमें गतानुगतिकताके पोषणके लिये कभी किसीको द्रव्य आदिकी कोई सहायता नहीं की। समाजकी गति और स्थितिसे वे अच्छी तरह परिचित हैं। व्यक्तिविशेषके आचार-विचारके प्रति उनकी सम दृष्टि है । वे अपना निजका जो आचार-विचार रखते हैं वह उनकी निजकी परिस्थितिके कारण है। उनमें उनका अभिनिवेश नहीं है और नाही दूसरेके भिन्न प्रकारके आचार-विचारके प्रति उनका अनुदारभाव है। उनमें गहरी विचारक शक्ति है और हर प्रकारके विचारोंका पृथकरण वे स्वयं अच्छी तरहसे कर सकते हैं। किसी दूसरेके विचारका अन्ध अनुकरण या अनुसरण करना उनकी प्रकृति में बिल्कुल नहीं है । न वे किसी साधु या आचार्यके बहकानेसे बहकनेवाले हैं और न किसी धर्मास्मा मानने-मनानेवाले भाईयोंसे प्रभावित होनेवाले हैं। उनको अपने कार्यका और लक्ष्यका स्पष्ट दिग्दर्शन है और उसे कैसे सिद्ध किया जाय इसके उपाय और योजनाके समझनेका यथेष्ट ज्ञान है। - इस प्रकार दो दिन तक मैंने उनके साथ दिन और रात बैठ कर खूब बातें की। भिन्न भिन्न प्रकारके अपने विचार प्रदर्शित किये और उनके विचार सुने। मनुष्यके सामान्य वार्तालापसे ही उसके प्रकृति आदिका योग्य परिज्ञान प्राप्त कर लेनेकी मैं अपनेमें यथेष्ट परख शक्ति रखता हूं-ऐसा मुझमें कुछ विश्वास है। इस विश्वासके अनुसार मैंने सिंघीजीको एक आदर्श विचारवान् व्यक्ति और विश्वस्त भावनाशील सजनके रूपमें अपने मनमें स्थान दिया। उनके निरभिमान व्यवहार, तीव्र बुद्धिप्रभाव, गहरी समझशक्ति, इतिहास-साहित्य - स्थापत्य चित्रकला आदि विषयोंकी अंडी परख, सांप्रदायिक मूढ विचार और रूढिवादसे निरपेक्षभाव, व्यक्ति विशेषके
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