________________
१२ ] ★M-AVMAVAN
खणमेत्त सोक्खा बहुकाल दुक्खा ।
पणाम दुक्खा अणिगाम सोक्खा ॥ कामनाओं की पूत्ति क्षणभर के लिए सुखदेने वाली और चिरकाल दु:ख देने वाली है-प्रारम्भ में सुखद लगती है, उसका परिणाम दु:खपूर्ण होता है ।
नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्थि
परिग्रह के समान कोई जाल नहीं है । वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं धन दुःख बढ़ाने वाला है।
अत्थो अणत्थमूलं अर्थ अनर्थ का मूल है। लाहा लोहो पवड्ढा
लाभ से लोभ बढ़ता है।
गंथंणिमित्तं घोरं परितावं परिग्रह मनुष्य के लिए घोर परिताप का कारण है।
गंथो भयं णराणं परिग्रह के कारण मनुष्य में भय उत्पन्न होता है। णठे गंथे य पुणो तिव्वं पुरिसो लहदि दुक्खं परिग्रह (धन सम्पत्ति) के नाश से मनुष्य अत्यन्त दु:खी होता है।
जीवस्स ण तित्ती अत्थि तिलोगे वि लद्धम्मि (और) तीनों लोक का वैभव प्राप्त हो जाने पर भी मनुष्य की तृप्ति नहीं होती।
ममाइ लुपइ बाले मकत्व बुद्धि के कारण नासमझ लोग भटकते हैं। परिग्गहनिविट्ठाणं वेरं तेसिं पवढई
जो परिग्रह में फंसे हुए हैं, वे वैर ही बढ़ाते हैं। माणी वि सहइ गंथणिमित्तं वयं वि अवमाणं अभिमानी व्यक्ति भी धन के लिए घोर अपमान सहता है।
SANTOR
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org