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KAVINVAK
कामपिसायग्गहिदो हिदमहिदं वा ण अप्पणो मुणदि काम पिशाच के वश में हुआ व्यक्ति अपने हित-अहित को नहीं देखता, वह अपनी आत्मा को नहीं पहचानता।
दक्खो वि होई मंदो विसयपिसाओवहद चित्तो अत्यन्त दक्ष व्यक्ति भी इन्द्रियों के विषय रूपी पिशाच से ग्रस्त हो कर मंदबुद्धि हो जाता है।
सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुसं तेसि उन व्यक्तियों का जीवन ही जीवन है जिनका शील (आचरण) सुशील है ।
सीलं मोक्खस्स सोवाणं शील (ब्रह्मचर्य) मोक्ष का सोपान है ।
जीवो बंभा जीवम्मि जीव शब्द का अर्थ ही ब्रह्म है-बाह्य विषयों को छोड़कर आत्मा में चर्या करना ही ब्रह्मचर्य है।
न सो परिग्गह वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा ।
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो इव वुत्तं महेसिणा ॥ महामुनि ज्ञातृपुत्र महावीर ने आसक्ति को परिग्रह कहा है, पदार्थों को परिग्रह नहीं बताया।
अब्भंतर बाहिरए सव्वे गंथे तुमं विवज्जेहि भीतर और बाहर समस्त ग्रंथियों के उन्मोचन का नाम अपरिग्रह है।
अपरिग्गहो अणिच्छो इच्छा रहित होना अपरिग्रह है । इच्छाह आगास समा अणंतिया
मनुष्य की इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं। दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हयो जस्स न होइ तण्हा ।
तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हयो जस्स न किंचणाइं॥ जिसे मोह नहीं, उसका दुःख दूर हो गया । जिसे तृष्णा नहीं, उसका मोह नष्ट हो गया। जिसके लोभ नहीं. उसकी तष्णा मिटगई। और जिसके पास परिग्रह (धन सम्पत्ति) नहीं, उस अकिंचन का लोभ समाप्त हो गया।
कामा दुरतिकम्मा कामनाएँ दुर्लध्य हैं।
AMORYA
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