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परिहर असंतवयणं
असत्य भाषण का त्याग करना सत्य है। हिंसा-वयणं ण वयदि, कक्कस-वयणं पि जो ण भासेदि । णिठ्ठरवयणं पि तहा ण भासदे गुज्झ-वयणं पि॥ हिदमिदवयणं भासदि संतोसकरं तु सव्व-जीवाणं ।
धम्मपयासणवयणं अणुव्वदी होदि सो बिदिओ ॥ जो सत्याणुव्रत का पालन करने वाला है, वह हिंसा के वचन नहीं कहता, कठोर वचन नहीं बोलता, निष्ठर वचन नहीं कहता, दूसरे की गुप्त बात को प्रकट नहीं करता, हित-मित-सन्तोषप्रद और धर्म-प्रकाशक वचन बोलता है।
भासियव्वं हियं सच्चं सदा हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिये । नापुट्ठोवागरेकिंचिपुट्ठो वा नलियं वए बिना पूछे बोले नहीं, और पूछने पर असत्य न बोले ।
__नाइवेल वएज्जा आवश्यकता से अधिक न बोले ।
सच्चेण जगे होदि पमाणं इस जगत में सत्य से ही मनुष्य प्रामाणिक होता है ।
पापस्सागमदारं असच्चवयणं
असत्य वचन पाप के आगमन के द्वार हैं। जलचंदणससिमुत्ताचंदमणी तह णरस्स णिच्वाणं ।
ण करंति कुणइ जह अत्थज्जुयं हिदमधुरमिदवयणं ॥ मनुष्य को जितना आनन्द सार्थक, हितकर, मित और मधुर वचन प्रदान करते हैं, उतना शीतल जल, चन्दन, चन्द्रमा, मुक्ता,चन्द्रकान्त मणि आदि पदार्थ भी नहीं पहुँचाते ।
सच्चं लोगम्मि सारभूयं संसार में सत्य ही सारभूत पदार्थ है।
तं सच्चं खु भगवं सत्य ही निश्चय से भगवान है।
SAMADUR
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