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अप्पणा सच्चमेसिज्जा (अत:) आत्मा से सत्य की खोज करो।
अदिन्नमन्त्र सु य णो गहेज्जा किसी की किसी भी वस्तु को बिना उसके दिये हुए ग्रहण नहीं करना चाहिये ।
___ लोभाविले आययई अदत्तं
लोभ के वश चोरी की प्रवृत्ति होती है । चोरस्स णत्थि हियए दया च लज्जादमो व विस्सासो चोर के हृदय में दया, लज्जा, दम (इच्छादमन) और विश्वास नहीं होते।
जो बहुमुल्लं वत्, अप्पय मुल्लेण णव गिण्हेदि । वीसरियं पि ण गिण्हदि, लाहे थोवे पि तूसेदि ॥ जो परदव्वं ण हरदि माया-लोहेण कोह-माणेण ।
दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्वई सो हवे तिदिओ ॥ जो बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य में नहीं खरीदता, दूसरे की भूली हुई वस्तु को नहीं उठाता, थोड़े लाभ में ही सन्तुष्ट रहता है और छलकपट, लोभ, क्रोध एवं मान के वश दूसरे के द्रव्य का हरण नहीं करता, वह दृढ़ चित्तवाला शुद्धमति अचौर्याणुव्रत का पालन करने वाला होता है।
तं अप्पणा न गिण्हंति नो वि गिण्हावए परं।
अन्नं वा गिण्हमाण पि नाणुजाणति संजया ॥ वह (इस प्रकार अन्याय का धन) न स्वयं ग्रहण करता है, न दूसरों को उसे ग्रहण करने की प्रेरणा देता है, और न उसे ग्रहण करने वालों की अनुमोदना करता है।
तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं तपो में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तप है ।
अणेगागुणा अहीणा भवंति एक्कंमि बंभचेरे ब्रह्मचर्य का पालन करने से अनेक गुण मनुष्य के अधीन हो जाते हैं ।
कामुम्मत्तो संतो डन्झदि य कामचिताए काम से उन्मत्त व्यक्ति का चित्त काम-चिन्ता से जलता रहता है।
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