Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहुसंहिता
जरद्गवीथि, अजवीथि, मृगवीथि और वैश्वानरवीथि में भ्रमण करने का फलादेश बताया गया है। दक्षिण, उत्तर, पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर से शुक्र के उदय होने का तथा अस्त होने का फलादेश कहा गया है। अश्विनी, भरणी आदि नक्षत्रों में शुक्र के अस्तोदय का फल भी विस्तारपूर्वक बताया गया है। शुक्र की आरूढ, दीप्त, अस्तंगत आदि अवस्थाओं का विवेचन भी किया गया है। शुक्र के प्रतिलोम, अनुलोम, उदयास्त, प्रवास आदि का प्रतिपादन भी किया गया है। इस अध्याय में गणित त्रिया के बिना केवल शुक्र के उदयास्त को देखने से ही राष्ट्र का शुभाशुभ ज्ञान किया जा सकता है।
सोलहवें अध्याय में शनिवार का कथन है। इसमें ३२ श्लोक हैं। शनि के उदय, अस्स, भारूड़, छ, गत आदि जगायों का मन किया गया है। कहा गया है कि श्रवण, स्वाति, हस्त, आर्द्रा, भरणी और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में शनि स्थित हो, सो पृथ्वी पर जल की वर्षा होती है, मुभिक्ष, समर्धता-वस्तुओं के भाकों में समता और और प्रजा का विकास होता है । अश्विनी नक्षत्र में शनि के विचरण करने से अश्व, अश्वारोही, कवि, वंद्य और मन्त्रियों को हानि उठानी पड़ती है। शनि और चन्द्रमा के परमार वेध, परिवेष आदि का वर्णन भी इस अध्याय में है। शनि के वकी और मानी होने का फलादेश भी इस अध्याय में कहा गया है।
सत्रहवें अध्याय में गुरु ने वर्ण, गति, आधार, मार्गी, अस्त, उदय, वक्र आदि का फलादेश धणित है। इस अध्याय में ४६ श्लोक हैं। बृहस्पति का, कृत्तिका, रोहिणी, मृगगिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुप्य, आश्लेषा, गया और पूर्वाफाल्गुनी इन नो नक्षत्रों में उमर मार्ग, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल और पूर्वापाढ़ा इन नौ नक्षत्रों में मध्यम मार्ग एवं उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी और भरणी इन नौ नक्षलों में दक्षिण मार्ग होता है। इन मार्यो का फलादेश इस अध्याय में विस्तारपूर्वक निरूपित है । संवत्सर, परिवत्सर, इरावत्सर, अनुवत्सर और इद्वत्सर इन पाँचों संवत्सरों के नक्षत्रों का वर्णन फलादेश के साथ किया गया है। गरु की विभिन्न दशाओं का फलादेश भी बतलाया गया है।
अठारहवें अध्याय में बुध के अस्त, उदय, वर्ण, ग्रहयोग आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इस अध्याय में 37 श्लोक हैं। बुध की सौम्या, विमिश्रा, संक्षिप्ता, तीव्रा, घोरा, दुर्गा और पापा इन सात प्रकार की गतियों का वर्णन किया गया है। बुध की सौम्या, विमिना और संक्षिप्ता गतियाँ हितकारी हैं। शेष सभी गलियों पाप गतियाँ हैं। यदि बुध समान रूप से गमन करता हुआ शकटवाहक के द्वारा स्वाभाविक गति से नक्षत्र का लाभ करे तो यह बुध का नियतचार कहलाता है, इसके विपरीत गमन करने से भय होता है। बुध की