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स्वर्गीय महाराजा के
दुःख का मूल : लोभ नहीं सकता और न ही यहाँ किसी को पापों की माफी देकर स्वर्ग या मोक्ष दे सकता है । मध्ययुग में ईसाई धर्माधिकारी पोप धनिकों से यहाँ बहुत सा धन ऐंठकर स्वर्ग की हुन्डी लिख देते थे, परन्तु यह सब पोपलीला लोभप्रेरित लीला है । लोभवश दूसरे के पाप अपने पर लेने वाले व्यक्ति की एक रोचक घटना सुनिए— नेपाल के स्व ० राजा महेन्द्र के श्राद्धकर्ता ब्राह्मणदेव ने सारे पाप अपने ऊपर ओढ़ लिए हैं और उसके बदले में उन्हें अपार सम्पत्ति दे दी गई है । प्राचीन परम्परानुसार महाराजा के पापों को ढोने वाले यह ब्राह्मणदेव एक वर्ष तक जंगल में समाज बहिष्कृत अपराधी के रूप में एकान्तवास करेंगे । एक वर्ष की सजा के बाद यह ब्राह्मण पापमुक्त हो जाएगा और अछूत से छूत बनकर समाज में फिर सम्माननीय जीवन बिताने लगेगा । अन्तर यही रहेगा कि अभी तक वह परमदैन्य की जिन्दगी बिता रहा था, किन्तु स्व० महाराजा के पापों को अपने सिर पर ढोने के कारण स्व० महाराजा के उत्तराधिकारी से जो सम्पत्ति मिली है उसके कारण, लोग कहते हैं, उसकी सातों पीढ़ियाँ सुख से जीवन बिता सकेंगी । कहते हैंउधर राजा महेन्द्र सर्वपापमुक्त होकर स्वर्ग में मौज करेंगे, इधर ब्राह्मण देवता की सातों पीढ़ियाँ चैन की बंशी बजायेगी । इस सौदे में कोई घाटे में नहीं रहेगा । यह है, लोभ की विचित्र लीला !
लोभवश पुत्र मरण आदि का भयंकर दुःख पाया
लोभ एक ऐसा राक्षस है, कि वह मनुष्य को हत्यारा, दम्भी, कामी, धर्मभ्रष्ट और क्रोधी बना देता है । लोभ के वश मनुष्य दूसरों का गला काट देता है, परन्तु उस भयंकर कुकर्म की सजा देर-सबेर उसे मिले बिना नहीं रहती । जिस अपने कुकृत्य की सजा मिलती है, तब वह रोता, चिल्लाता और अपने कोसते हुए सिर पीटता है । एक सच्ची घटना 'कल्याण' में पढ़ी थी
समय उसे भाग्य को
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मेरठ जिले के पांचली गाँव के एक किसान के यहाँ किसी दूर के गाँव के दो भाई बैल खरीदने के लिए आए। सौदा १२००) रु० में तय हो गया। रात हो गई थी, इसलिए किसान ने आग्रहपूर्वक उन्हें अपने यहाँ रख लिया और खिला-पिलाकर बरामदे में सुला दिया। जब वे गहरी नींद में थे, तभी कृषकबन्धुओं के मन में लोभ जागा । दोनों कृषकबन्धुओं ने ग्राहकबन्धुओं की हत्या करके उनका धनापहरण करने की पापपूर्ण योजना बनाई । अपनी पत्नियों को इस कार्य में सहयोगी बनाया । लाशों को गाड़ने के प्रबन्ध के लिए दोनों कृषकबन्धुओं ने घर के निकटवर्ती ईख के खेत में खड्डा खोदने का निश्चय किया, और शीघ्र ही इस काम में लग गए । संयोगवश गाँव के एक प्रतिष्ठित सज्जन को शौच की हाजत हुई, और वे उसी ईख के खेत में शौच गये । परन्तु खेत में बड़ी खड़खड़ाहट हो रही थी, इसलिए शान्त होकर ध्यान दिया तो दो व्यक्तियों की मन्द, किन्तु सतर्क सज्जन को उन दोनों के कार्यों तथा योजना का पता लगा तो वह
बातचीत सुनाई दी
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। उस पर उस तुरन्त उन दोनों
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