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आनन्द प्रवचन : भाग ६
होकर सेठ के कार्यालय कक्ष में घुसने लगा तो जोर-जोर से झगड़ने के शब्द सुनाई दिये । आगन्तुक ने ध्यान से सुना, सेठानी सेठ पर बरस रही थी। सेठ समझा रहे थे—“अरी ! इतना हल्ला मत कर । बाहर मेहमान बैठा है, वह सुनेगा तो क्या समझेगा ?" पर सेठानी मनाने पर भी नहीं मान रही थी। फिर सेठ के रोने की आवाज सुनी तो आगन्तुक समझ गया कि सेठ अपनी पत्नी के कारण बहुत दुखी है। इसकी अपेक्षा तो मैं सुखी हूँ। मेरी पत्नी मेरा कहना तो मानती है । अपना समाधान पाकर आगन्तुक चुपचाप वहाँ से चल दिया।
वह एक जमींदार के यहाँ पहुँचा। वहाँ भी इस सेठ की तरह ही जमींदार ने आगन्तुक से कहा । आगन्तुक वहाँ भी एक दिन रुका, परन्तु दूसरे ही दिन जमींदार की अपने लड़के के साथ झपट होती देखी। बाप कहता था-"तू शराब पोकर आवारा लड़कों के साथ घूमता है, यह मुझे अच्छा नहीं लगता। इस बुढ़ापे में मेरी इज्जत तू क्यों मिट्टी में मिला रहा है ?" लड़का कहता था-"यह मेरी इच्छा है, मैं जिन्दगी का आनन्द लूटूं। आपके कहने से मैं रुक नहीं सकता।" इस प्रकार जमींदार को अपने पुत्र के कारण दुःखी देखकर आगन्तुक वहाँ से भी चल दिया। वह पहुँचा एक दुकानदार के यहाँ, जहाँ ग्राहकों की भीड़ लग रही थी, रुपये बरस रहे थे। जब भीड़ छंट गई तो आगन्तुक ने दूकानदार से अपनी बात कही। परन्तु उसने भी कहा "मुझे धन तो बहुत मिलता है, परन्तु मैं न तो सुख से सो सकता हूँ, न सुख से खापी सकता हूँ। काम धंधे के मारे जरा भी अवकाश नहीं मिलता। नींद की गोली लेकर सोता हूँ।" आगन्तुक वहाँ से भी चल पड़ा। फिर वह कई व्यक्तियों के पास गया परन्तु उसे कोई भी सुखी नहीं मिला, जिससे कोट माँग सके ।
आखिर एक पेड़ के नीचे बैठे एक मस्त फकीर को देखा तो दुःखिया ने उससे पूछा- 'महाराज ! आप बड़े सुखी मालूम होते हैं।"
फकीर ने शांत मुस्कराहट के साथ कहा-'अवश्य, मैं बहुत सुखी हूँ, इसलिए कि मैं दूसरों को सुखी देखकर ईर्ष्या नहीं करता, धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, सन्तान आदि की बिलकुल चाह नहीं है मुझे । जो कुछ खाने को मिल जाता है, उसी में सन्तोष मानकर परमात्मा का भजन करता हुआ मस्ती से जीवन बिताता हूँ।"
आगन्तुक—'तो फिर अपना कोट मुझे दे दीजिए न?"
फकीर बोला-'मेरे पास तो सिर्फ यह लंगोटी है। सोलन ने तुम्हें सुख का रहस्य समझाने के लिए ही यह उपाय बताया है। सुख का मूलमंत्र यही है--'हरहाल में मस्त रहकर संतोषपूर्वक जीवन बिताओ' ।" आगन्तुक को सुख का मंत्र मिल गया। अब उसे सोलन के पास जाने की जरूरत न रही।
__ अतः सुखप्राप्ति का मुख्य रहस्य यह है कि मनुष्य चाह और चिन्ता से दूर रहे । जहाँ किसी वस्तु की इच्छा होती है, वहाँ तृष्णा जागती है और तृष्णा के आते ही मनुष्य उस चीज को पाने के लिए दौड़ लगाता है, इससे उसका सारा सुख पलाय
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