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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १
७१ ।।
मतिरेव बलाद् गरीयसी, यदभावे करिणामियं दशा। इति घोषयतीव डिण्डिमः,
करिणो हस्तिपकाहतः क्वणन् । अर्थात्-बुद्धि ही बल से बढ़कर है, जिसके अभाव में हाथियों की यह दशा है। हाथी के महावत द्वारा पीटा जाता हुआ नगाड़ा मानो यही घोषणा करता है ।
इसीलिए गौतम ऋषि ने प्रकारान्तर से स्थिरबुद्धि प्राप्त करने की प्रेरणा दी है। स्थिरबुद्धि क्या है और वह कैसे प्राप्त होती है ? अगले प्रवचन में इस पर विवेचन करूंगा।
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