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- अरुचि वाले को परमार्थ-कथन : विलाप ३३६ "यह हमें नहीं मालूम ।" मजदूरों ने कहा।
तब नेहरूजी ने दामोदर घाटी परियोजना को संक्षेप में समझाते हुए देश के लिए उसका महत्त्व बताया। साथ ही नेहरूजी ने उन्हें समझाया कि केवल दिनभर मजदूरी करके शाम को पैसे लेकर घर चले जाना और सिर्फ अपने एक परिवार का पोषण कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् इस योजना को दिलचस्पी और राष्ट्रभक्ति की भावना के साथ पूर्ण करने में सबको अपना महत्त्वपूर्ण हिस्सा अदा करना है। इस योजना के पूर्ण हो जाने पर उनके तथा देश के लाखों-करोड़ों परिवारों को भी लाभ होने वाला है।
कहना न होगा कि मजदूर नेहरूजी के संक्षिप्त भाषण से अत्यधिक प्रभावित हुए। वे समझ गये कि “इस शानदार योजना से उनका ही नहीं, सारे देश का सम्बन्ध है।" एक पत्रकार ने जब नेहरूजी से यह पूछा कि आपने इन मजदूरों का इतना समय खराब करके क्या लाभ उठा लिया ? उन्होंने शान्तभाव से उत्तर दिया"यदि हमारे देश के इंजीनियर इस प्रकार की तमाम बातें समय-समय पर श्रमिकवर्ग को समझा दिया करें तो वे खुशी-खुशी और सूझबूझ के साथ उस कार्य में रुचि लेने लगें और अपना ही कार्य समझ कर उसे पूरा करें।"
बन्धुओ ! क्या उपदेशक, वक्ता या परामर्शक को अपने श्रोताओं को समझाने के लिए तथा उन्हें नीति, धर्म और अध्यात्म की बातों में दिलचस्पी लेने के लिए तैयार नहीं करना चाहिए ? एक पाश्चात्य विचारक मेसिलोन (Massillon) ने स्पष्ट कह दिया है
"I love a serious preacher, who speaks for my sake, and not for his own; who seeks my salvation and not for his own vain glory."
_ 'मुझे वह गम्भीर उपदेशक प्रिय है, जो मेरे लिए बोलता है, न कि अपने लिए; जिसे मेरी मुक्ति वांछनीय है, न कि अपनी थोथी शान ।'
उपदेश के योग्य पात्र कौन, अपात्र कौन ? इसीलिए महर्षि गौतम ने इसी बात की ओर संकेत किया है कि शिक्षा, उपदेश, प्रेरणा, सुझाव या सलाह किसको देनी चाहिए, किसको नहीं ? इस बात का पर्याप्त विवेक उपदेशक या परामर्शक वक्ता में होना चाहिए । एक साधक कवि ने इस सम्बन्ध में अपने भजन में पर्याप्त प्रकाश डाला है
'शिक्षा के लिए जी, तुम अपने को पात्र बनाओ। फिर जग के लिए जी, देखो, कितने प्रिय बन जाओ? ॥ध्र व॥
१. तर्ज—समय के फेर से जी........।
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