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आनन्द प्रवचन : भाग ६
आती, आरम्भ-परिग्रह में अत्यासक्त बने हुए हो। इसी कारण मैंने जो इतनी देर तक विप्रलाप किया वह व्यर्थ गया । अतः मैं जा रहा हूँ।"
इस प्रकार अरुचिवान ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने मुनि के आध्यात्मिक उपदेश की एक भी बात न मानी । महर्षि गौतम इसीलिए उपदेशकों को चेतावनी देते हुए कहते हैं
अरोइ अत्थं कहिए बिलावो __ आपका भी इसी में कल्याण है कि अरुचिवान को कुछ भी हित की बात कहने से बचें।
बात
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