Book Title: Anand Pravachan Part 09
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 374
________________ ३५४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ हैं और उससे उसका भयंकर अनिष्ट भी हो जाता है। इसी प्रकार किसी बेसमझ या किसी बात से अनभिज्ञ को उस बात से अनभिज्ञ या अधूरी समझ वाला कोई व्यक्ति उस विषय में मार्गदर्शन देता है तो वह उस व्यक्ति की ही नहीं, सारे समाज या ग्राम-नगर की ओर से अश्रद्धा का भाजन बनता है, अपना यश खो बैठता है, अपने जीवन पर अपयश का काला धब्बा लगा लेता है; साथ ही जिसको वह उपाय बताता है, मार्गदर्शन देता है, उसके भी श्रम, समय और धन की बर्बादी करा देता है । । इसीलिए महर्षि गौतम मार्गदर्शक, नेता या ज्ञान व उपदेश-प्रदाता को यह दूसरी चेतावनी देते हैं कि जब तक किसी विषय में तुम्हारा ज्ञान परिपक्व या सांगोपांग न हो, तब तक किसी व्यक्ति को उस विषय में सुझाव, मार्गदर्शन या परामर्श देना खतरे से खाली नहीं है वह एक प्रकार का विलाप है, उस विषय में अधूरे अथवा अधकचरे ज्ञान वाले व्यक्ति की बकवास है, बड़बड़ाहट है । उस अधकचरे ज्ञान वाले के मार्गदर्शन से मार्गदर्शन पाने वाला भी रोता है और देने वाला भी । कारण यह है कि अधूरा मार्गदर्शन देने से या अधकचरा उपाय यात्रा में जहाँ संकट, विघ्न, विपत्ति या कष्ट आयेंगे, वहाँ वह उन्हें हल नहीं कर सकेगा, वह रोएगा, अपने कर्मों को, मार्गदर्शन देने वाले को; या अन्य निमित्तों को कोसेगा, मन ही मन कुढ़ेगा और क्रोध में आकर प्रतिक्रियास्वरूप वह उस अज्ञानी या अनाड़ी मार्गदर्शक पर बरस भी सकता है, वह उसकी पूरी खबर ले सकता है । तब उसे रोना ही तो पड़ता है, अपने अज्ञान पर । बताने से उसे अपनी कार्य समर्थ रामदास ने कुछ ऐसे साधु बना लिये, जो साधुता से अनभिज्ञ थे । साधु का अर्थ उन्हें इतना ही समझाया गया था कि "भगवान् और गुरु पर पूर्ण श्रद्धा रखना, गुरु की सेवा करना।" उन्हें समर्थ गुरु द्वारा भली-भाँति साधुता के विषय में समझाये न जाने का परिणाम समर्थ रामदास को भोगना पड़ा । एक बार वे अपने शिष्यों के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव जा रहे थे। रास्ते एक किसान का गन्ने का खेत पड़ा । खेत में खड़े गन्ने देखकर समर्थ रामदास के शिष्यों का मन ललचाया । वे आगे-आगे चल रहे थे, गुरुजी एक-दो शिष्यों के साथ अभी बहुत पीछे थे । अतः साधुता से अनभिज्ञ वे शिष्य खेत के मालिक से बिना पूछे ही गन्ने तोड़ने लगे । साधु को जीवनोपयोगी चीजें मुफ्त में मिल सकती हैं, परन्तु याचना करने पर ही । इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस चीज के मालिक से बिना अपराध है । किसान ने पूछे ही स्वयं कोई चीज लेने लगे । यह तो अनैतिकता है, साधुओं को गन्ने तोड़ते देखा तो उनकी चोरी की वृत्ति पर उसे बड़ा क्रोध आया । अतः उसने पहले तो उन साधुओं को रोका, फिर भी न माने तो वह लाठी लेकर मारने दौड़ा । साधु थोड़ी-बहुत मार खाकर आगे भाग गये । इधर पीछे से समर्थ रामदास आ रहे थे । उस किसान ने उन्हें देख कर समझा - यह उन चोर साधुओं का सरदार मालूम होता है । यह सोच उनकी पीठ पर भी कसकर चार-पाँच डण्डे बरसाए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434