Book Title: Anand Pravachan Part 09
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 385
________________ परमार्थ से अनभिज्ञ द्वारा कवन : विलाप ३६५ __"जल कहां से गई ? तुम तो कहती थीं न, कि आत्मा जलती नहीं है ?" पति महोदय ने कहा। ___अब उसकी अक्ल ठिकाने आई । बोली-"यह तो शरीर के साथ सम्पर्क होने से जलती है।" पति बोला--"जैसे शरीर के साथ आत्मा का सम्पर्क होने से वह जलती है, जलने का अनुभव होता है, वैसे ही शरीर के साथ सम्पर्क होने से इसे भूख-प्यास भी लगती है, यह सुनती और सूघती भी है, आहार भी करती है । सब प्रकार के सुखदुःख का वेदन–अनुभव भी करती है।" ___ इसीलिए मैंने कहा कि एकांगी और अधूरा ज्ञान दूसरों के सामने कहने और तदनुसार करने से कई खतरनाक समस्याएं पैदा हो जाती हैं । अनुभवहीन व्यक्ति उस एकांगी ज्ञान का दुरुपयोग करते हैं। वे आदर्शों की छाया में कई अनर्थ कर बैठते हैं। इसलिए यहाँ जैसे उस निश्चयनयवादी एकांगी अधकचरे ज्ञानी ने उस महिला को भी एकांगी निश्चयनय का पाठ पढ़ाया, साथ में व्यबहारनय का तत्त्व नहीं बताया, इसके कारण घर में गड़बड़झाला पैदा होगई। वैसे ही अन्य एकांगी ज्ञानियों से हो सकती है। यह क्यों होता है ? इसका कारण है-अनुभूति की तीव्रता का अभाव । व्यक्ति सुनता है, लेकिन अनुभूति में तीव्रता न आने से वह श्रवण कार्यकारी नहीं होता । अनुभूति की तीव्रता होने में तीन कारण प्रतीत होते हैं—पहला है-शब्द, दूसरा है अनुमान, और तीसरा है-प्रत्यक्षीकरण । शब्द से केवल वस्तु की जानकारी होती है । जानकारी और अनुभूति में अन्तर है । शास्त्रों से जो सुनते हैं, उससे शाब्दिक ज्ञान होता है, अनुभव नहीं । 'चीनी' शब्द सुनते ही पहले उसकी जानकारी होती है, अनूभूति तो चीनी को खाने के बाद होती है । अनुमान से भी शाब्दिक ज्ञान के साथ जुड़ने पर थोड़ी अनुभूति होती है, किन्तु उस अनुभूति में तीव्रता नहीं आती। अनुभूति की पूरी तीव्रता प्रत्यक्षीकरण में होती है। आप कह देते हैं अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि आत्मा के विकास के लिए अच्छी बातें हैं। पर यह ज्ञान तो आपको शास्त्रों से हुआ है, अथवा भगवान या महापुरुषों ने कहा है, इसलिए हुआ है। आपने उनका जीवन में अनुभव नहीं किया-प्रत्यक्षीकरण नहीं किया, तब तक आपकी इन बातों के प्रति तीव्र अनुभूति नहीं कहलाएगी। आपने तो केवल पढ़कर या सुनकर केवल शाब्दिक या आनुमानिक ज्ञान के आधार पर ही कह दिया है कि ये बातें अच्छी हैं। ___एक पण्डित ससुराल से घर आया तो आते ही आंगन में बैठकर रोने लगा। लोगों ने रोने का कारण पूछा तो जोर-जोर से रोते हुए बोला-"मेरी स्त्री विधवा होगई।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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