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आनन्द प्रवचन : भाग ६
का कल्याण होने वाला नहीं । वे तो मायाविनी होती हैं । इसलिए मैं संसार और स्त्री का त्यागकर आत्मकल्याण करना चाहता हूँ।" इस पर संतोजी बोले-'तुम्हारी बात तो ठीक है, लेकिन यह अत्यन्त कठिन मार्ग है, पहले भलीभाँति सोच लो।"
ब्राह्मण बोला—मैंने सोच लिया है । चाहे जितना कठिन हो, मैं उसी पर चलूंगा।" तब सन्तोजी ने कहा- "जैसी तुम्हारी इच्छा । जाओ, ये कपड़े नदी में फैक आओ और एक लंगोटी लगा लो।"
ब्राह्मण आवेश में था । इसलिए तुरन्त कपड़े उतारकर नदी में फेंक दिये और लंगोटी लगाकर संतोजी के पास आया । सन्तोजी ने कहा- “शरीर पर भस्म लगा लो और बैठकर राम नाम का जाप करो।" ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, त्योंत्यों उसे भूख सताने लगी। भूख से व्याकुल होकर वह संतोजी के पास आकर बोला -“महाराज ! भूख लगी है, क्या करूं ?"
___ सन्तोजी बोले- "बात तो ठीक है । समय हो गया है, इसलिए क्षुधा तो लगेगी ही। जाओ, सामने ये पेड़ दिखाई दे रहे हैं, इनकी पत्तियाँ तोड़ लो और बाँटकर ले आओ।"
जब वह पत्तियाँ बाँटकर एक बड़ा गोला बनाकर ले आया, तब उसमें से आधा गोला उसे खाने को दे दिया और आधा स्वयं ने खा लिया। ब्राह्मण को भूख तो बहुत थी, लेकिन उसने कभी पत्तियां खाई नहीं थीं, इसलिए उससे कड़वी पत्तियाँ न खाई गई। अब उसका वैराग्य धीरे-धीरे छूमन्तर होने लगा। पर अब घर जाने में भी उसे शर्म लगती थी। ज्यों-ज्यों रात बढ़ने लगी, भूख के साथ ठण्ड भी सताने लगी। वह सन्तोजी के पास आकर-“महाराज ! ठण्ड सता रही है, क्या करूँ ?"
सन्तोजी ने कहा- "मेरे पास तो कपड़े नहीं हैं। ज्यादा ठण्ड लगती हो तो लकड़ी जलाकर ताप लो।" वह थोड़ी देर तक तो तापता रहा, लेकिन रात बढ़ने के साथ ही उसकी भूख और ठण्ड बढ़ती गई। उसका वैराग्य बिलकुल उड़ गया। वह बोला- “महाराज ! अब तो घर जाना चाहता हूँ।"
- सन्तोजी बोले- "क्या कहा ? घर जाना चाहते हो ? अरे रे ! यह क्या कह रहे हो? तुम्हीं तो बता रहे थे कि संसार असार है, और नारी नरक की खान है। तब उसके संग कैसे रहोगे ?" ... वह बोला- “महाराज ! बात तो सही है, लेकिन यह मेरे वश की बात नहीं है। यह तो आप जैसे सन्तों का ही काम है। मुझे आज्ञा दीजिए, मैं घर जाता हूँ ।"
लंगोटी लगाकर घर जाने में शर्म तो आ रही थी, लेकिन आधी रात बीत जाने से अब कोई डर नहीं था। गाँव में चारों ओर अँधेरा था, लोग निद्राधीन थे। अतः लंगोटी पहने ही वह घर पहुँचा । द्वार खटखटाया । पत्नी ने पूछा-'कौन है ?"
ब्राह्मण ने अपना नाम बताया। वह बोली-"मेरे पति ऐसे नहीं हो सकते कि वे वापस आ जाएँ। उनका वैराग्य वर्षों पुराना है। वर्षों से वे कहते आ रहे थे कि
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