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विक्षिप्तचित्त को कहना : विलाप
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चित्तीयशक्ति का समुचित उत्पादन न हुआ तो उसका मनोरथ वन्ध्या की पुत्रकामना की तरह निष्फल हो जाता है, उसका चित्त विक्षिप्त हो जाएगा, उसमें कुण्ठा का जंग लग जाएगा। अतः चित्त को विक्षिप्त होने से बचाने के लिए शक्तियों का उत्पादन चित्त को एकाग्र करके लगन, उत्साह, तन्मयता एवं श्रद्धा के साथ लगातार करते रहना चाहिए, अभ्यास को छोड़ना ठीक नहीं होगा।
तीसरा उपाय चित्त को विक्षिप्त होने से बचाने का यह है कि चित्त में निहित और संचित शक्तियों को बंद करके न रखें, उन्हें जाम न करें, उनका सदुपयोग करें व करना सीखें।
मनुष्य का चित्त एक औजार है । इस औजार के सहारे वह छोटे-बड़े कार्यों का सम्पादन करता है। पाप-पुण्य, उन्नति-अवनति, सफलता-असफलता या स्वर्ग-नरक आदि की रचना चित्त पर निर्भर है । मैं पूछता हूँ, जिस औजार पर मनुष्य के सभी सुख-दुःख निर्भर हों, उसका ठीक तरह से उपयोग या प्रयोग करना तो आना चाहिए न ? किन्तु कितने लोग हैं, जो चित्त की शक्तियों का सदुपयोग करना जानते हैं ? बंदर के हाथ में तलवार हो, बछड़े की दुम से राजसिंहासन बंधा हो तो ये दोनों ही पशु उससे कुछ भी लाभ न उठा सकेंगे, बल्कि आफत में फँस जाएँगे। जिस व्यक्ति को बंदूक के कलपुों का ज्ञान न हो तो वह गोली-बारूद सहित बढ़िया राइफल लिये फिरे, उससे लाभ तो कुछ भी न उठा पाएगा, बल्कि कुछ भूल हुई तो मुसीबत में पड़ जाएगा। इसी प्रकार चित्तरूपी औजार मनुष्य के पास है, अगर वह इसकी शक्तियों का ठीक तरह से उपयोग या प्रयोग करना नहीं जानता है तो नादान की तरह चित्त को विक्षिप्तता के गर्त में गिरा देगा, जिससे अनेक मुसीबतें खड़ी कर लेगा । अधिकांश मनुष्य नाना प्रकार की आपत्तियों, कठिनाइयों और वेदनाओं में तड़पते मालूम होते हैं, इनका कारण मनुष्य को अपनी चित्तीय शक्तियों का सदुपयोग करना न आना है। चित्तीय शक्तियों का सदुपयोग न करने से उसका चित्त विक्षिप्तता के कुसंस्कार में फंसकर नाना दुःखों, काल्पनिक या स्वतःकल्पित कष्टों का अनुभव करता है । चित्तरूपी औजार का ठीक उपयोग करना आता तो शायद आधे से अधिक दुःखों का अन्त हो जाता। - चौथा उपाय है-चित्त को अशुद्ध और अस्वस्थ न होने देना।
जिस प्रकार अनाड़ी ड्राइवर गाड़ी को कहीं भी दुर्घटनाग्रस्त कर सकता है, उसी प्रकार असंतुलित, अशुद्ध एवं अस्वस्थ चित्त, जो कि आगे चलकर विक्षिप्त हो जाता है, जीवन-नैया को मझधार में डुबा देता है, नष्ट कर देता है। चित्त में जब अशुद्ध चिन्तन, अशुभ विचार, गंदी भावनाएँ और अश्लील या क्लिष्ट कार्यों की लगन भर जाती है, तब व्यक्ति का चित्त अस्वस्थ हो जाता है, और जब वह अपने चित्त के अशुद्ध चिन्तन या अशुभ विचारों के अनुसार बुरे एवं अनैतिक कार्यों में लग जाता है, या लगा रहता है तो चित्त भी हीन होता जाएगा। धीरे-धीरे चित्त का अभ्यास
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