Book Title: Anand Pravachan Part 09
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 378
________________ ३५८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ बैलों को जोतकर रथ बाबाओं के सामने खड़ा कर दिया। सब साबा बगीची चौकीदार को सौंपकर रथ में बैठ गये। सब ने गिनियों वाली नौली अपनी-अपनी कमर में बाँध ली । मार्ग में भयंकर जंगल आया, विषम और उन्नत पर्व श्रेणियाँ भी थीं। ठगों ने अवसर देखकर बाबाओं से कहा-'अब रास्ता पर्वतों की घाटियों में से होता हुआ बहुत घुमावदार है । यहाँ से एक पगडंडी सीधी उस गाँव को जाती है, जहाँ हमें आज रात को मुकाम करना है, किन्तु इस पगडंडी से रथ पार नहीं हो सकता। रथ को. ८-१० कोस का चक्कर काटकर वहाँ जाना पड़ेगा, आप व्यर्थ ही हैरान हो जाएँगे अतः इस पगडंडी से चले जाइए, घण्टे भर में आप वहाँ पहुँच जायेंगे।" बाबाओं की समझ में बात आ गयी। वे रथ से उतर पड़े और ठगों की बताई हुई पगडंडी पर चलने लगे । ठगों ने उनसे कहा-"बाबाजी ! जोखिम वाली कोई वस्तु साथ में मत रखिएगा। जंगल का मामला है, कोई भी खतरा पैदा हो सकता है ।" सभी बाबाओं ने अपनी-अपनी कमर से नौली खोलकर ठगों के कहे अनुसार रथ में रख दी। उनके मन में ठगों के प्रति पूरा विश्वास जम चुका या । जो प्रतिदिन सबको एक-एक गिन्नी भेंट देते हों, वहाँ धोखे का क्या काम ? सारा धन ठगों के कब्जे में आ गया। चलते-चलते उन धुर्तों ने फिर बाबाओं से कहा- "बाबाजी ! आप लोग संभलकर चलते रहिएगा। रास्ते में कई गुमराह करने वाले व्यक्ति भी मिल सकते हैं, जो आपको बहकाएँगे कि यह पगडंडी नहीं है। आप किधर जा रहे हैं, उधर खाई है, उसमें गिर पड़ेंगे; परन्तु आप उन धूतों की बात बिल्कुल न सुनें। आपको कोई बराबर आवाज दे तो कुछ पत्थर अपनी-अपनी झोली में भरकर रखिए, ताकि टोकने वाले को उन पत्थरों से मार भगाया जा सके, वे आपके पास ही न आ सकें।" यों वे ठग इन अंधे बाबाओं को गुमराह करके नौ दो ग्यारह हो गये। . बेचारे अंधे लाठी के सहारे चल पड़े । कुछ आगे बढ़ने पर किसी हितैषी ग्वाले ने आवाज लगाई-"बाबाजी ! इधर आप लोग कहाँ जा रहे हैं ? यह रास्ता नहीं है आगे भयंकर खोह है, उसमें गिर पड़ेंगे । ठहरें, आगे मत बढ़े।" पर बाबाओं ने धूर्तों के सिखाये अनुसार उस हितैषी को धूर्त समझकर अपनी झोली से तुरन्त पत्थर निकाले और उसकी तरफ फैकने लगे । ज्यों-ज्यों उसने रोकना चाहा, त्यों-त्यों पत्थरों की बौछार करने लगे। बेचारा ग्वाला चुप होकर चल दिया। इसी तरह अनेक लोगों ने उन्हें उस रास्ते से जाने से मना किया, मगर बाबाओं ने किसी की नहीं सुनी । नतीजा यह हुआ कि आगे चलकर सभी अंधे बाबा एक गहरे खड्डे में गिर पड़े और वहीं उनके प्राण पखेरू उड़ गये। सचमुच स्वार्थान्धों के द्वारा पकड़ाये हुए गलत रास्ते पर चलने वाले हिये के अन्धों की यही दशा होती है। __ यही बात सूत्रकृतांग सूत्र (श्रु. १ अ. १ उ. २) में कही गई है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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