Book Title: Anand Pravachan Part 09
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ ३४६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ अधिक दिनों तक छिपा नहीं सकता। एक दृष्टान्त द्वारा इसे समझाने का प्रयत्न करता हूँ माणिक्यपुरी नाम की समृद्ध नगरी के राजा का पुत्र, नगरसेठ का पुत्र और एक गरीब युवक तीनों दिलोजान दोस्त थे। एक बार तीनों ने विचार किया कि हम संसार के प्रपंच को छोड़कर किसी विद्वान गुरु के सान्नध्य में जाकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करें। तदनुसार वे तीनों घरबार छोड़कर सिर्फ एक वस्त्र धारण करके घोर अरण्य में रहने वाले एक संन्यासी के पास पहुँचे । महात्मा समाधिस्थ थे। तीनों उनके ध्यान खुलने की प्रतीक्षा में बैठे रहे। काफी समय के पश्चात् जब महात्मा ने आँखें खोली तो उन तीनों मित्रों को देखा। सर्वप्रथम नगरसेठ के पुत्र की ओर दृष्टि करके उन्होंने पूछा- "वत्स ! तुम्हारे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ?" उसने उत्तर दिया-'महात्मन ! मैं माणिक्यपुरी के नगरसेठ का पुत्र हूँ, अगणित द्रव्य और कुटुम्बियों को छोड़कर आपके पास आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से आया हूँ । कृपया मुझे अपना शिष्य बनाइए।" ___उसकी बात सुनकर महात्मा मुस्कराए और वही प्रश्न राजकुमार से पूछा। उसने उत्तर दिया- "महात्मन् ! मैं माणिक्यपुरी के विजयी राजा का पुत्र हूँ । हीरा, मोती, माणिक्य, दास-दासी, रत्नजटित आभूषण, वैभव सामग्री एवं कुटुम्ब आदि को छोड़कर आत्मज्ञान के लिए आपके चरणों में आया हूँ। कृपया मुझे अपना शिष्य बनाइए।" - महात्मा कुछ हँसे, फिर उस गरीब युवक से वही प्रश्न. पूछा तो उसने कहा"प्रभो ! मैं कौन हूँ ? यही जानने के लिए मैं यहाँ आया हूँ।" __महात्मा आसन से उठे और उस गरीब युवक को छाती से लगाकर कहा"वत्स ! तुम तीनों में से तुम एक ही आत्मज्ञान के लिए वस्तुतः उत्कण्ठित हो । मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँगा।" ___बन्धुओ ! आत्मज्ञान के पिपासु को देखने-परखने की आँखें होनी चाहिए। वह छिपा नहीं रहता, परीक्षक व्यक्ति की दिव्य आँखों से । परन्तु यह बात अवश्य है कि सम्यग्रुचिसम्पन्न व्यक्ति नहीं होगा तो उसे तत्त्वज्ञान का उपदेश देने पर वह सफल नहीं होगा, व्यर्थ जायगा। मगवान महावीर को केवलज्ञान होते ही जब उन्होंने प्रथम उपदेश दिया, तब कोई सम्यक्रुचिसम्पन्न व्यक्ति न होने से वह निष्फल गया। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान के उपदेश को ग्रहण के लिए सम्यक्रुचिसम्पन्न व्यक्ति का होना कितना आवश्यक है ? रुचि के तीन प्रकार रुचि की विभिन्नता को लेकर शास्त्रकारों ने संसार के समस्त जीवों की रुचि को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया है वह पाठ इस प्रकार है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434