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आनन्द प्रवचन : भाग ६
जलद एक ही सभी ठौर पर, एक-सा जल बरसाता। सीप, सरोज, समुद्र, तवे पर, वह फिर अन्तर पाता ॥ शिक्षा....... शिक्षक-जलधर सीप पात्र ले शिक्षा-बद गिराता। मोती बनकर वह ओरों की कितनी शान बढ़ाता ? शिक्षा....... ग्राहक एक सरोज बना, वह कुछ भी नहीं ले पाता। सिर्फ प्रशंसक गुण का बनकर, उसकी आब बढ़ाता ॥ शिक्षा....... एक सिन्धु-सा शिक्षा ग्राहक, उसमें दोष मिलाता। भली बात को बुरा रूप दे, औरों को भरमाता ॥ शिक्षा......" तप्त तवे का साथी, वह जो, अपना गाना गाता। शिक्षा की प्रत्येक बात का खण्डन करता जाता ॥ शिक्षा....... प्रथम पात्र बन जाता वह तो, उत्तम है कहलाता । दजा मध्यम, शेष अधम की श्रेणी में है आता ॥ शिक्षा.....
उपदेश या शिक्षा के प्रति विविध पात्रों को परखने का कितना सुन्दर गुर कवि ने बतला दिया है। सच्चा उपदेशक या परामर्शक इस प्रकार देश, काल, पात्र, परिस्थिति और अवसर आदि देखकर चलता है, जहाँ देश, काल या पात्र आदि समुचित नहीं जान पड़ते, वहाँ मौन रहता है, किन्तु व्यर्थ ही सांसारिक वासनाओं या इच्छाओं को श्रोताओं में उभाड़ने का प्रयत्न नहीं करता। पाश्चात्य विचारक गाउलबर्न (Goulburn) ने बहुत ही मार्के की बात कह दी है
"Send your audience away with a desire for worldly affairs, and an impulse toward spiritual improvement or your preaching will be a failure."
'ऐ उपदेशको ! अपने श्रोताओं को सांसारिक वासनाओं से दूर हटाओ और आध्यात्मिक प्रगति की ओर जोर दो, अन्यथा तुम्हारा उपदेश असफल होगा।' अरुचि क्या, रुचि क्या ?
__महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र द्वारा जब यह बता दिया कि जो व्यक्ति अरुचिवान है, उसे परमार्थ का बोध कहना विलाप है, तब यह स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है कि जो अरुचिवान है, वह उपदेश या परमार्थबोध के योग्य पात्र नहीं है । - अब प्रश्न यह होता है कि वह अरुचि क्या है, जिसका स्पर्श पाकर व्यक्ति परमार्थबोध के लायक नहीं रहता ?
इसके लिए सर्वप्रथम रुचि का स्वरूप समझ लेना होगा। रुचि का स्वरूप समझ लेने पर आपको अरुचि का स्वरूप शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा; क्योंकि रुचि से विपरीत ही अरुचि है।
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