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आनन्द प्रवचन : भाग ६
यत्नं विना धर्मविधावपीह, प्रवर्तमानोऽसुमतां विघातम् । '
करोति यस्माच्च ततो विधेयो धर्मात्मना सर्वपदेषु यत्नः ॥'
इस साधना-जगत् में धर्मानुष्ठान में प्रवृत्त साधक यत्ना के बिना प्राणियों का विघात करता है। इसलिए धर्मात्मा पुरुष को समस्त प्रवृत्तियों में यत्ना करनी चाहिए। गृहस्थवर्ग के लिए भी यतना का विधान
शास्त्र में गृहस्थश्रावक के लिए भी यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने का विधान है। उपाश्रयादि धर्मस्थान बंधवाने में आरम्भ (हिंसा) तो होता है, लेकिन यदि श्रावक यतनापूर्वक यथाशक्ति कार्य करता-करवाता है तो प्राणिहिंसा से बहुत कुछ बचाव हो सकता है। इसी प्रकार बहनें भी रसोई बनाने, मकान की सफाई करने, लीपनेपोतने तथा अन्य कार्यों को करने में यतना रखें तो हिंसा से बहुत ही बचाव हो सकता है। कई बहनें अविवेक के कारण पानी, घी, तेल आदि तरल पदार्थों के बर्तन खुले छोड़ देती हैं, उनमें कई जीव पड़ जाते हैं, कई बार चीजों को न संभालने के कारण उनमें लीलन-फूलन पड़ जाती है ।
एक बार उदयपुर के श्रावकों की यतना का हमें प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। पंचायती नौहरे में जहाँ साधुओं का चातुर्मास होता था, वहाँ वे बरसात आने से पहले ही छत पर तेल और पानी को मिलाकर उसका पोता लगा देते थे, जिससे चौमासे में वहाँ लीलन-फूलन पैदा न हो, यह यतना का नमूना है। इसी प्रकार कई लोग अविवेक के कारण कपड़े मैले-कुचैले होने देते हैं, शरीर में पसीना होने से वह उन्हीं मैले कपड़ों के साथ लग जाता है, और उनमें जूं पैदा हो जाती हैं। ऐसे अविवेकी लोग फिर उन जूंओं को मारते रहते हैं। परन्तु विवेकी श्रावक पहले से ही कपड़ों को यतनापूर्वक धो लेता है, शरीर भी भीगे कपड़े से यतनापूर्वक पोंछ लेता है और इस यतना के कारण मैल से होने वाली हिंसा से बच जाता है ।
यतना के बिना प्रवृत्ति करने वाले श्रावक को अनर्थदण्ड (निरर्थक हिंसा) का पाप लगता है।
ज्ञातासूत्र में जहाँ धारणी रानी की गर्भावस्था का वर्णन किया है, वहाँ शास्त्रकार रानी के द्वारा की जाने वाली यतना का वर्णन भी करते हैं"तस्स गब्भस्स अणुकंपट्ट्याए जयं चिट्ठति, जयं आसयति, जयं सुविति...।"
-श्रुतस्कंध १, अध्ययन १ "उस गर्भ की अनुकम्पा के लिए रानी, जिससे गर्भ को किसी प्रकार की
१. दर्शन० १ तत्त्व
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