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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२३ हल्ला सुनकर पड़ोसी ने पता लगाया और उस बेबुनियाद लड़ाई का रहस्य मालुम पड़ा तो वह डंडा लेकर गोवर्द्धन के यहाँ आया। उसने घर में रखे मिट्टी के चार-पांच वर्तन फोड़ डाले । गोवर्द्धन चिल्लाया-'अरे भाई ! ये बर्तन क्यों फोड़ डाले?"
__ पड़ौसी बोला- "इसलिए कि तुम्हारी भैंस मेरा सारा खेत चर गई। भैंस के अपराध का दण्ड मालिक को भोगना होगा।"
गृहस्वामिनी बोली-- "भले आदमी ! अभी तो यह भैंस खरीदकर ही कहाँ लाया है ? फिर तुम कैसे झूठी बात बना रहे हो कि तुम्हारी भैस मेरा खेत चर
गई ?"
पड़ोसी ने कहा-"जब बिना खरीदे भैंस मेरा खेत नहीं चर सकती, तो बिना भैंस लाये मक्खन-मलाई कहाँ से दे दी गई ? और तुम दोनों क्यों गुस्से में तमतमाकर लड़ने लगे ?"
पड़ौसी की तथ्यपूर्ण बातें सुनकर पति-पत्नी दोनों अपनी मूर्खता पर लज्जित हो गये। हां, तो ऐसी मूर्खताएँ क्रोधावेश की देन हैं ।
द्वेष और वैर से कुपित होने पर द्वेष और वैर का प्रकोप भी क्रोध के प्रकोप से सम्बन्धित है। अन्य बुरी परिस्थितियाँ तो थोड़ी देर ठहरकर अपना कुप्रभाव दिखाकर विदा हो जाती हैं, पर द्वेष और वैर का प्रकोप काफी लम्बे अर्से तक चलता है । कई बार तो मन में ऐसी जड़ जमाकर बैठ जाता है, निरन्तर काँटे की तरह खटकता रहता है। इन दोनों के प्रकोप में ऐसी खराबी है कि उनके कारण प्रतिशोध और प्रतिहिंसा की भावना पैदा हो जाती है, जिसके साथ द्वेष और वैर होता है, उसे कोई न कोई हानि पहुँचाने को जी चाहता है और जी की जलन तब तक शान्त नहीं होती, जब तक बदला नहीं ले लिया जाता । वैर का बदला प्रतिपक्षी के मन में ठीक वैसी ही प्रतिहिंसा की भावना पैदा करता है । इस प्रकार वैर की प्रतिक्रिया का कुचक्र दोनों पक्षों में चिरकाल तक और कभी तो पीढी-दर-पीढी तक चलता है । कभी-कभी संगठित रूप-पार्टीबंदी के रूप में उठ खड़ा होता है । हत्या, कत्ल, डकैती, लूट, अपहरण, चोरी, छुरेबाजी, फौजदारी आदि घटनाएँ केवल धन के लालच से नहीं, अपितु उनमें से अधिकांश तो पुरानी अदावत के कारण या वैर-द्वेष के प्रतिशोध के रूप में होती है। सर्प जैसा तुच्छ जीव क्रोधावेश में इतना उग्र हो जाता है कि छेड़ने वाले की जान लिए बिना सन्तुष्ट नहीं होता। द्रौपदी के जरा से व्यंग से क्षुब्ध होकर दुर्योधन इतना क्रूर और असंतुलित हो गया कि उसने पाण्डवों से बदला लेने के लिए महाभारत जैसे भयंकर युद्ध को स्वीकार कर लिया। चम्बल घाटी के दुर्दान्त दस्यु लाखों मनुष्यों का नागरिक जीवन अस्तव्यस्त करने में क्यों लगे ? इन डाकुओं का प्रारम्भिक जीवन किसी साधारण बात से
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