________________
३३२
आनन्द प्रवचन : भाग ६
कथा होय तंह श्रोता सोवै, वक्ता मूढ़ पचाया रे।
होय जहाँ कहिं स्वांग तमाशा, तनिक न नींद सताया रे ॥ उपदेशकों का अविवेक
वास्तव में उपदेशक या वक्ता को उपदेश, आदेश, प्रेरणा देने या राय देने की उतावली नहीं करनी चाहिए । इस उतावली का परिणाम कभी-कभी बड़ा भयंकर आता है। पर आज हम देखते हैं कि वक्ता, उपदेशक या परिवार एवं समाज में परामर्शक श्रोताओं का हाजमा देखे बिना ही अधिक से अधिक तत्त्वज्ञान, परामर्श एवं धर्म की बातें उन्हें परोस देते हैं। जिससे उन्हें अकसर अजीर्ण और ज्ञान का अहंकार हो जाता है। वे उस ज्ञान को पचा नहीं पाते, न वे उस ज्ञान के अधिकारी ही होते हैं। उनकी भूमिका निम्न स्तर की होती है और उच्च स्तर की बातें उनके दिमाग में ढूंसने की कोशिश की जाती है। इसीलिए प्राचीनकाल में अनधिकारी को उपदेश नहीं दिया जाता था। जो अभी नीति-न्याय की प्राथमिक भूमिका पर भी आरूढ़ नहीं हुआ है, उसे ऊँची-ऊँची आध्यात्मिक एवं दार्शनिक बातें कहकर वे वक्ता अपना समय भी खराब करते हैं और उन अनधिकारी श्रोताओं की अश्रद्धा और अवज्ञा के भी पात्र बनते है । चन्दन दोहावली में ठीक ही कहा है
बिना पात्र देना नहीं, हितकारी भी सीख ।
'चन्दन' रखना इसीलिए, उदासीनता ठीक ।।
कई बार अनधिकारी को उपदेश देने पर अनर्थ-परम्परा खड़ी हो जाती है। एक रोचक दृष्टान्त मुझे याद आ रहा है, इस सम्बन्ध में
एक धनिक ने सस्ती वाहवाही लूटने के विचार से एक पण्डितजी से अपने यहाँ महाभारत की कथा करवाई। कथा कीर्तन में उसकी कोई श्रद्धा नहीं थी, परन्तु जनता की दृष्टि में धर्मात्मा कहलाने की लालसा थी। कथा के समय सेठ, सेठानी, दोनों पुत्र तथा पुत्री सबसे आगे की पंक्ति में बैठते थे। महाभारत की कथा समाप्त हुई । कथा-समाप्ति पर पण्डितजी ने सबके सामने ही सेठसाहब से पूछा"क्यो सेठसाहब ? महाभारत से आपने क्या शिक्षा ली ?"
सेठ निःश्वास फेंकते हुए बोला-"महाभारत सुनकर मुझे रह-रह कर यही चिन्ता सता रही है, कि मैंने अपना सारा जीवन यों ही बिता दिया । महाभारत सुनने की बहुत देर से सूझी।"
सेठ की बात से लोगों में बहुत कुतूहल छा गया। लोग समझ नहीं पाए कि इनमें इतनी धार्मिक रुचि कब से जाग गई ? बात का तार खोलते हुए सेठ ने कहा-"महाराज आपने सुनाया था कि दुर्योधन अपने भाई पाण्डवों से लड़ता-लड़ता मर गया, मगर उन्हें राज्य का हिस्सा नहीं दिया । दयानिधान ! अगर मैं पहले सुन लेता तो मैं अपने भाई को सम्पत्ति का हिस्सा क्यों देता ? लेकिन अब क्या हो सकता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org