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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२५ भरा है। पूर्ण निर्दोष, परम सज्जन एवं निर्धान्त व्यक्ति तो वीतराग के सिवाय कोई नहीं होता। इस वास्तविकता को समझकर संसार में रहना है, वहाँ तक कामचलाऊ समझौते की नीति अपनानी चाहिए । जिनका व्यवहार आपको अप्रिय और अशिष्ट लगता हो, उनसे प्रेम और शान्तिपूर्वक वस्तुस्थिति पूछनी चाहिए और जो कारण रहा हो उसकी हानि समझाकर उसे उसके लिए तैयार करना चाहिए कि भविष्य में वह वैसी गलती न करे। यदि आपके ही समझने में कुछ भूल और भ्रान्ति हुई है तो आपको अपनी भूल तुरन्त स्वीकार करनी चाहिए।
दूरदर्शी, विवेकवान और सज्जन की पहचान यह है कि वह संतुलन नहीं खोता; तर्क, सूझबूझ और विवेक से काम लेता है; अप्रिय प्रसंगों के कारणों को बारीकी से ढूंढ़ता है; उनके समाधान का उपाय शान्तचित्त से निकालता है। हर रोग की चिकित्सा है और हर अप्रिय समस्या का समाधान ! सज्जन समाधान ढूंढ़ते हैं और निकालकर रहते हैं । वे जानते हैं कि क्रोध और आवेश से, कटुवचन और अशिष्ट व्यवहार से, लड़ाई-झगड़े और आतंक से कोई भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, प्रत्युत उलझनें बढ़ती हैं।
यूनान के प्रख्यात दार्शनिक 'परीक्लीज' के पास एक दिन कोई क्रोधी व्यक्ति आया । वह पेरीक्लीज से किसी बात पर नाराज हो गया और वहीं खड़ा होकर गालियाँ बकने लगा, पर पेरीक्लीज ने उसका जरा भी प्रतिवाद न किया। क्रोधी व्यक्ति शाम तक गालियाँ देता रहा। जब अंधेरा हुआ तो घर की ओर चलने लगा, तब पेरीक्लीज ने अपने नौकर को लालटेन देकर उसे घर तक पहुँचा आने के लिए भेज दिया। इस आंतरिक सहानुभूति से उस व्यक्ति का क्रोध पानी-पानी हो गया।
सामान्य श्रेणी का व्यक्ति होता तो वह उसके क्रोध का प्रतीकार करता, लड़ बैठता और हिंसा भड़क उठती, जिससे दोनों की हानि होती, शक्ति खर्च होती। आवेशों को निरन्तर काबू में रखने, विपरीत परिस्थितियों से निरन्तर संघर्ष करने की मानसिक दक्षता मनुष्य में होनी चाहिए । अवांछनीय बातें मनुष्य के मस्तिष्क को प्रभावित या उत्तेजित न करें, यही बुद्धिमान पुरुष की पहिचान है। जो कुपित हो जाता है, उसकी बुद्धि तो शीघ्र भ्रष्ट और पलायित हो जाती है।
काम-कुपित होने पर जैसे क्रोध के प्रकुपित होने पर बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, वैसे ही काम से प्रकुपित होने पर भी मानव की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, वह अपने आपे में नहीं रहता, उसे अपने हानि-लाभ, कार्याकार्य का विचार नहीं रहता। कामान्ध व्यक्ति मनुष्यता से दूर हो जाता है । वह तो पाशविकता का अनुसरण करके अपनी वासनापूर्ति के लिए कोई भी अमानुषिक कृत्य कर बैठता है। काम-कुपित व्यक्ति की बुद्धि भी उत्तेजना से आक्रान्त हो जाती है । वह भी ऐसे मूर्खतापूर्ण जघन्य कृत्य कर बैठता है, जिससे बाद में उसे आत्मग्लानि महसूस होती है । कामवासना आँधी और तूफान
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