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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३०६ खो बैठता है, यानी स्थिर-बुद्धि को गँवा बैठता है । जब स्थिर-बुद्धि पलायित हो जाती है तो मनुष्य इन्द्रियविषयों की आँधी में तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि आवेशों के प्रवाह में बह जाता है । उसे तनिक भी होश नहीं रहता कि मैं क्या कर रहा हूँ और क्यों कर रहा हूँ ?
कुपित का लक्षण क्या और कैसे ? चिकित्साशास्त्रियों का यह माना हुआ सिद्धान्त है कि वात, पित्त, कफ, धातु या मल शरीर में संतुलित और सम मात्रा में रहते हैं, तब तक शरीर स्वस्थ रहता है, शरीर में शक्ति रहती है और शरीर का प्रत्येक अंग अपना कार्य ठीक ढंग से करता है। जैसा कि आयुर्वेदशास्त्र में स्वस्थ का लक्षण बताया गया है
समदोषः समाग्निश्च समधातु-मलक्रियः ।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥ 'जिसके वात, पित्त और कफ ये त्रिदोष सम हों, अग्नि (जठराग्नि) भी सम हो, तथा धातु और मल की क्रिया भी सम हो, एवं आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हों, वह व्यक्ति स्वस्थ कहलाता है। यहाँ केवल शरीर और शरीर से सम्बन्धित दोष, धातु, मल एवं अंगोपांग की क्रिया संतुलित होने मात्र से ही मनुष्य को स्वस्थ नहीं बताया गया है, अपितु आत्मा, मन एवं इन्द्रियगण भी प्रसन्न हों, शुद्ध और स्वच्छ हों तभी पूर्ण स्वस्थता मानी गई है। इसके विपरीत जब ये सब विषम हो जाते हैं, ये सब अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर जाते हैं, साथ ही आत्मा, मन और इन्द्रियगण अशुद्ध और अप्रसन्न तो जाते हैं तो मानव अस्वस्थ हो जाता है।
निष्कर्ष यह है कि जब वात, पित्त, कफ ये तीनों अति मात्रा में बढ़ जाते हैं, असंतुलित हो जाते हैं, तब ये कुपित कहलाते हैं । इसी प्रकार धातु का भी जब अतिरेक हो जाता है और मल भी या तो अवरुद्ध हो जाता है, या मल अति मात्रा में होने लगता है, तब कहा जाता है कि धातु कुपित हो गया है, या मल कुपित हो गया है । इसी प्रकार जब मन में क्रोध अभिमान, लोभ, काम, मोह आदि विकारों का आवेग बढ़ जाता है, ये सब मनोविकार अति मात्रा में मानव मस्तिष्क में उभर आते हैं या मानव-जीवन में जब ये मनोविकार असंतुलित हो जाते हैं, तब कहा जाता है कि यह व्यक्ति कुपित हो गया है, या इस व्यक्ति का जीवन कुपित हो गया है।
जैसे शरीर के धातु, दोष, मल या अग्नि के कुपित होने पर मनुष्य अनेक रोगों से घिर जाता है, वैसे ही मन के काम-क्रोधादि विकारों के कुपित हो जाने पर मन भी रुग्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति में मानव-मस्तिष्क में बुद्धि स्वस्थ और स्थिर नहीं रहती, वह झटपट पलायन कर जाती है।
सामान्यतया जब मनुष्य क्रोधयुक्त हो, तब उसे कुपित कहा जाता है। अमुक व्यक्ति कुपित हो गया है, इसका आमतौर पर यही अर्थ समझा जाता है कि वह क्रुद्ध हो गया है, गुस्से से आग-बबूला हो गया है। परन्तु यहाँ कुपित का अर्थ केवल इतना
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