________________
बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३११ क्रोध में आँखें होती लाल, क्रोध में मुंह होता विकराल । क्रोध में खूब बजाता गाल, क्रोध में सभी बिगड़ती चाल ।। क्रोध में नोच डालता बाल, क्रोध कर देता है बेहाल । क्रोध से जल्दी आता काल, क्रोध देता नरकों में डाल । क्रोध में जलते सारे अंग, क्रोध में सत्य न रहता संग। क्रोध में हो जाती मति भंग, क्रोध में मिटती सभी उमंग ॥ क्रोध से काँप उठती सब देह, क्रोध में मिट जाता सब नेह । क्रोध से मिटता सद्व्यवहार, क्रोध में स्वयं मारता मार ॥ क्रोध में खोता सारी लाज, क्रोध में कुए गिरता भाज । क्रोध में गले बाँधता फांस, क्रोध में करता आत्मविनाश । क्रोध में गुरुजन को ललकार, क्रोध में देता है दुत्कार । क्रोध में उन्हें मारता मार, क्रोध में बिसराता सब प्यार ॥
क्रोध के समय शरीर, मन, इन्द्रियों और अंगोपांगों पर क्या-क्या चिन्ह प्रकट हो जाते हैं, यह इस कविता में स्पष्ट बता दिया गया है। .
कई बार मनुष्य की आँखें जब क्रोध से लाल हो जाती हैं, तो उसे प्रायः सभी चीजें लाल रंग की दिखाई देने लगती हैं। वैदिक रामायण का एक प्रसंग है। एक बार ऋषि वाल्मीकि रामायण का पाठ कर रहे थे। सभी श्रोता आनन्दविभोर होकर सुन रहे थे। प्रसंग आया रामदूत हनुमान का। वाल्मीकि ने कहा-'हनुमान जी सीता-माता की खोज में लंका गये। वहाँ वे अशोक वाटिका में पहँचे। सीताजी उसी वाटिका में एक अशोकवृक्ष के नीचे अपने स्वामी श्रीराम के ध्यान में मग्न बैठी थीं। उस वाटिका की छटा अपूर्व थी। एक जगह हनुमानजी ने बहुत ही मनोहर सफेद रंग के फूल देखे ।" हनुमानजी ने बीच में मधुर स्वर में ऋषि को टोका-'वे फूल सफेद नहीं, लाल रंग के थे, ऋषिवर !'' ऋषि ने दृढ़, किन्तु नम्र स्वर में कहा- "भक्तराज ! वे फूल सफेद ही थे।" यह सुनते ही बजरंगबली की भृकुटि चढ़ गई, वे बोले-'मैंने प्रत्यक्ष आँखों से देखा है। मेरी बात असत्य कैसे हो सकती है ?" ऋषि-"बात तो मेरी ही सत्य है।' इस पर हनुमानजी तैश में आकर बोले-"आप यहाँ बैठे-बैठे मुझ प्रत्यक्षदर्शी को झूठा बता रहे हैं, जबकि आपने फूल देखे भी नहीं । मैं आपका कथन कैसे स्वीकार कर सकता हूँ ?"
_ "लेकिन मैं भी असत्य को कैसे स्वीकर करवू ?' ऋषि ने दृढ़तापूर्वक कहा। दोनों ही अपने-अपने पक्ष पर अड़ गये। ऋषि वाल्मीकि और भक्तराज हनुमान के विवाद का निर्णय कौन करे ? किसी की भी सामर्थ्य नहीं थी। अन्त में हनुमान बोले-"तो इसका निर्णय प्रभु श्रीराम से ही कराया जाय ।" वाल्मीकि को कोई
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org