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आनन्द प्रवचन : भाग ६
अन्तिम ब्रह्मास्त्र फेंकते हुए कहा- ''मेरे मन का समाधान तभी हो सकता है, जब वह कुम्हार मेरे घर जुआर माँगने आए और मैं उसके सिर में जूता मारूँ।" .
बन्धुओ ! सेठानी का क्रोध इतनी चरमसीमा पर पहुँच गया था कि वह उस कुम्हार को अपना शत्रु मानकर उसे पराजित और अपमानित करना चाहती थी। सेठानी क्रोधावेश में यह नहीं समझ सकती थी कि आवेश में किये गए दुर्व्यहार से दूसरों को जितनी क्षति पहुँचाई जाती है, उससे बहुत गुनी क्षति अपनी हो जाती है। इस मस्तिष्कीय ज्वर से दूसरों की अपेक्षा अपनी ही हानि अधिक है। ऐसे क्रोध से शरीर विषाक्त हो जाता है, अगणित मस्तिष्कीय एवं नाड़ी संस्थान के रोग पैदा हो जाते हैं। एक घण्टे के क्रोध में जब एक दिन के तेज बुखार से अधिक शक्ति नष्ट होती है, तब इतने लम्बे क्रोध से कितनी अधिक शक्ति नष्ट होगी ? सचमुच, क्रोधाविष्ट व्यक्ति की जीवनीशक्ति आवेश की आग में जलती-भुनती रहती है। दिन प्रतिदिन ठीक सोचने की क्षमता कम होती जाने से वह अर्धविक्षिप्त एवं सनकी जैसी मनोदशा में जा पहुँचता है।
___ यही हाल आवेशग्रस्त रूपाली बा का हुआ । क्रोधाविष्ट रूपाली बा को बदला लेने की धुन सवार हुई। उसने अपना निश्चय सुना दिया- "जब तक आप इसके लिए कोई उपाय नहीं सोचेंगे, तब तक न तो मैं खाऊँगी और न खाने दूंगी।" सेठ मेघाशा के सामने विकट समस्या थी। उसे सेठानी के मनःसमाधान का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । पर सेठानी के मोह में मूढ़ मेघाशा इस समस्या को सुलझाने के लिए आधी रात तक जागते रहे । एकाएक सेठ को एक युक्ति सूझी। आधी रात को ही उन्होंने अपने परिचित सुखदेवजी यति का द्वार खटखटाया। यतिजी ने उठकर द्वार खोला । सेठ ने अपने आगमन का प्रयोजन बताया। सेठ की बात पर गहराई से मन्थन करने के बाद यतिजी ने कहा- “कुम्हार तुम्हारे घर तभी आ सकता है, जब दुष्काल पड़े, पास में खाने को अनाज न हो, हजारों मनुष्यों एवं पशुओं की दुर्दशा हो । परन्तु सेठ ! यह कल्पना कितनी भयंकर है ? कितनी रौद्र लीला है, हाहाकार भरी यह !"
सेठ बोला-"चाहे जो हो, सेठानी को तो राजी करना है, वह और किसी उपाय से राजी होने वाली नहीं है ।'' यतिजी बोले-"पर यह तो घोर पाप होगा। मेरी विद्या का दुरुपयोग होगा।" सेठ ने कहा- "गुरुजी ! चाहे जो हो जाय, इतना काम तो करना ही पड़ेगा। नहीं तो हम दोनों मर जाएँगे । आप दुष्काल की चिन्ता न करें। मेरे पास रुपयों का टोटा नहीं है । अनाज और घास का संग्रह भी मैं कर लूंगा। मेरे यहाँ जो आएगा, उसे देता रहूँगा। फिर यह तो मौके की बात है । काम निपट जाने के बाद तो सब किसानों को अनाज तौल देंगे। बस इतना काम तो आपको अवश्य करना ही होगा।"
यतिजी सच्चे यति न थे, वे सेठ से मिलने वाली वृत्ति छूट जाने के भय से
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