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आनन्द प्रवचन : भाग ६
वह सेठ से कहने लगी- "मेरा मनोरथ तो पूर्ण हो गया है । अव आपको जो करना हो सो करें।" पर सेठ कालियार मृग के चले जाने से निरुपाय था।
तीसरे वर्ष ही सेठ-सेठानी के पापकर्मों का उदय हुआ। घर में चोर घुसे और सारा द्रव्य व अनाज समेट कर ले गए। सेठ के घर में कुछ भी न रहने दिया। जनता भूख के मारे त्रस्त होकर मरने लगी। सेठानी और यतिजी के शरीर में भयंकर कोढ़ फूट निकला। दोनों तीव्रतर वेदना से रो-धो कर बुरी दशा में मरणशरण हुए।
यह है चिरकाल तक क्रोधाविष्ट होने का परिणाम !
बन्धुओ ! क्रोध भयंकर आग है, बल्कि आग से भी बढ़कर है । अग्नि तो उसी व्यक्ति को जलाती हैं, जो उसकी लपेट में आ जाता है। मगर क्रोध के दावानल में क्रोध करने वाला तो जलता ही है, साथ में सारा परिवार भी उस जलन की अनुभूति करता है। क्रोधावेश का प्रभाव कभी-कभी वैयक्तिक जीवन से आगे समाज, प्रांत तथा राष्ट्र तक पर पड़ता है, जिसके भीषण परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं। हिन्दुस्तान के विभाजन के समय हिन्दू-मुस्लिम दंगों के हृदयस्पर्शी दृश्य आज भी हमारे स्मृतिपट पर हैं । अभी तक उसका घाव भरा नहीं है । क्रोधावेश में आकर आए दिन भारत में विद्यार्थीवर्ग, श्रमिकवर्ग तथा वर्गभेद से पीड़ित समुदायों के द्वारा हड़ताल, बंद, तोड़फोड़, दंगे, आगजनी, हुल्लड़ आदि किये जाते हैं, जिसमें राष्ट्र की अपार धनजन की क्षति होती है। रोषावेश में जनता कितनी विवेकमूढ़ हो जाती है कि वह राष्ट्र के हिताहित को नहीं सोच पाती।
मानव-प्रकृति का यह मुख्य लक्षण है कि जिस बात से उसका बार-बार सम्पर्क होता है, उसी में वह ढल जाता है। बार-बार उत्तेजना के दौर से गुजरने पर वह व्यक्ति उत्तेजक स्वभाव का हो जाता है, उसकी बौद्धिक क्षमता एवं दूरदर्शिता नष्ट हो जाती है । उद्वेग के तूफान में आध्यात्मिक शक्तियाँ भी दुर्बल एवं कर्त्तव्यहीन हो जाती हैं । फलतः उसके अन्तर् से क्षमा, शान्ति, सन्तोष, धैर्य, दया, प्रतिभा आदि शक्तियाँ जड़मूल से नष्ट हो जाती हैं, विवेकशक्ति पंगु हो जाती है।
एक रोचक दृष्टान्त द्वारा में इसे समझाना चाहता हूँ
एक मनुष्य बड़ा ही हठी और उग्रस्वभाव का था। जब भी उसे क्रोध आता, वह बिलकुल भान भूल जाता था। बार-बार उत्तेजना के दौर से गुजरने के कारण उसका स्वभाव उत्तेजक हो गया था। उसकी पत्नी का स्वभाव भी बड़ा अहंकारी, था, वह फैशन की पुतली थी। नित नये शृंगार करना ही उसका दैनिक कार्यक्रम रहता था।
एक बार पति-पत्नी दोनों तीर्थयात्रा करने चले । यात्रा पैदल ही कर रहे थे। रास्ते में एक सजल नदी आई। नदी के निकट पहुँचते ही पत्नी ने पति से कहा"मेरे पैरों में महावर लगा हुआ है। नदी में होकर जाने से वह छूट जाएगा। आप ऐसा उपाय करें, जिससे यह न छूटे, मेरी मेहनत बेकार न जाए।"
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